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"घबराहट / अलेक्सान्दर ब्लोक / वरयाम सिंह" के अवतरणों में अंतर
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क्या हो रहा है यह मेरे साथ | क्या हो रहा है यह मेरे साथ | ||
समझ नहीं पाओगे तुम | समझ नहीं पाओगे तुम | ||
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− | + | बर्फ़ीले अन्धड़ का यह धुन्धलका ? | |
सोए या जागे होने पर | सोए या जागे होने पर | ||
− | यह तुम्हारी आँखें चमकती हैं क्या मेरे लिए? | + | यह तुम्हारी आँखें चमकती हैं क्या मेरे लिए ? |
दिन-दोपहर में भी क्यों | दिन-दोपहर में भी क्यों | ||
− | बिखरने लगते हैं रात्रि-केश? | + | बिखरने लगते हैं रात्रि-केश ? |
तुम्हारी अपरिहार्यता ने ही क्या | तुम्हारी अपरिहार्यता ने ही क्या | ||
− | विचलित नहीं किया है मुझे अपने पथ से? | + | विचलित नहीं किया है मुझे अपने पथ से ? |
क्या ये मेरा प्रेम और आवेग हैं | क्या ये मेरा प्रेम और आवेग हैं | ||
− | खो जाना चाहते हैं जो | + | खो जाना चाहते हैं जो अन्धड़ में ? |
− | ओ मुखौटे | + | ओ मुखौटे ! सुनने दे मुझे, |
− | अपना | + | अपना अन्धकारमय हृदय, |
ओ मुखौटे, लौटा दे मुझे | ओ मुखौटे, लौटा दे मुझे | ||
− | मेरा हृदय, मेरे उजले दुख! | + | मेरा हृदय, मेरे उजले दुख ! |
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01:17, 23 जून 2022 के समय का अवतरण
नाचती हुई ये छायाएँ हम हैं क्या ?
या छायाएँ हमारी हैं ?
राख हो चुका है पूरी तरह
सपनों, धोखों और प्रेतछायाओं से भरा दिन।
क्या है जो आकर्षित कर रहा है हमें
समझ नहीं पाऊँगा यह,
क्या हो रहा है यह मेरे साथ
समझ नहीं पाओगे तुम
धुन्धला कर रहा है मुखौटे के पीछे किसकी नज़रों को
बर्फ़ीले अन्धड़ का यह धुन्धलका ?
सोए या जागे होने पर
यह तुम्हारी आँखें चमकती हैं क्या मेरे लिए ?
दिन-दोपहर में भी क्यों
बिखरने लगते हैं रात्रि-केश ?
तुम्हारी अपरिहार्यता ने ही क्या
विचलित नहीं किया है मुझे अपने पथ से ?
क्या ये मेरा प्रेम और आवेग हैं
खो जाना चाहते हैं जो अन्धड़ में ?
ओ मुखौटे ! सुनने दे मुझे,
अपना अन्धकारमय हृदय,
ओ मुखौटे, लौटा दे मुझे
मेरा हृदय, मेरे उजले दुख !