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मुक्ति की तलाश है मुझे। | मुक्ति की तलाश है मुझे। | ||
− | पर्वत शिखरों पर जल रहे हैं मेरे | + | पर्वत शिखरों पर जल रहे हैं मेरे अग्निकुण्ड |
− | आलोकित हुआ है पूरा रात्रि- | + | आलोकित हुआ है पूरा रात्रि-प्रदेश । |
− | सबसे अधिक चमक है मेरी | + | सबसे अधिक चमक है मेरी अन्तस् दृष्टि की |
और तुम हो दूर... पर हो भी क्या तुम ? | और तुम हो दूर... पर हो भी क्या तुम ? | ||
− | मुक्ति की तलाश है | + | मुक्ति की तलाश है मुझे । |
− | गूँज रहा है आकाश में तारों का | + | गूँज रहा है आकाश में तारों का समूहगान । |
− | अभिशाप दे रही हैं मानव | + | अभिशाप दे रही हैं मानव पीढ़ियाँ । |
तुम्हारे लिए शिखरों पर | तुम्हारे लिए शिखरों पर | ||
− | जला रखे हैं, मैंने | + | जला रखे हैं, मैंने अग्निकुण्ड। |
− | पर तुम हो | + | पर तुम हो प्रपंच । |
− | मुक्ति की तलाश है | + | मुक्ति की तलाश है मुझे । |
गाते-गाते थक गए हैं तारे। | गाते-गाते थक गए हैं तारे। | ||
− | चली जा रही है | + | चली जा रही है रात । |
− | लौटने लगी हैं | + | लौटने लगी हैं शँकाएँ |
− | उन उज्ज्वल शिखरों से उतर रही हो | + | उन उज्ज्वल शिखरों से उतर रही हो तुम । |
− | खड़ा हूँ मैं यहाँ तुम्हारी प्रतीक्षा | + | खड़ा हूँ मैं यहाँ तुम्हारी प्रतीक्षा में । |
− | तुम्हारी और फैला दिया है मैंने अपना | + | तुम्हारी और फैला दिया है मैंने अपना हृदय । |
− | तुम्हीं में है मेरी मुक्ति! | + | तुम्हीं में है मेरी मुक्ति ! |
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01:22, 23 जून 2022 के समय का अवतरण
मुक्ति की तलाश है मुझे।
पर्वत शिखरों पर जल रहे हैं मेरे अग्निकुण्ड
आलोकित हुआ है पूरा रात्रि-प्रदेश ।
सबसे अधिक चमक है मेरी अन्तस् दृष्टि की
और तुम हो दूर... पर हो भी क्या तुम ?
मुक्ति की तलाश है मुझे ।
गूँज रहा है आकाश में तारों का समूहगान ।
अभिशाप दे रही हैं मानव पीढ़ियाँ ।
तुम्हारे लिए शिखरों पर
जला रखे हैं, मैंने अग्निकुण्ड।
पर तुम हो प्रपंच ।
मुक्ति की तलाश है मुझे ।
गाते-गाते थक गए हैं तारे।
चली जा रही है रात ।
लौटने लगी हैं शँकाएँ
उन उज्ज्वल शिखरों से उतर रही हो तुम ।
खड़ा हूँ मैं यहाँ तुम्हारी प्रतीक्षा में ।
तुम्हारी और फैला दिया है मैंने अपना हृदय ।
तुम्हीं में है मेरी मुक्ति !