भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कण्ठ की सुराही को / रामकुमार कृषक" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामकुमार कृषक |अनुवादक= |संग्रह=स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 15: | पंक्ति 15: | ||
नलकों पर जुट आई प्यास | नलकों पर जुट आई प्यास | ||
कूओं की | कूओं की | ||
− | + | पेन्दियाँ उलीच, | |
अधुनातन घोर तप करे ! | अधुनातन घोर तप करे ! |
15:01, 8 जुलाई 2022 का अवतरण
कण्ठ की सुराही को
बून्द का अभाव
किस तरियों पेट-घट भरे !
जिह्वा को
होठों तक खींच
नलकों पर जुट आई प्यास
कूओं की
पेन्दियाँ उलीच,
अधुनातन घोर तप करे !
आँखों को
केंचुल से ढाँप
लील रहे मिट्टी का स्वेद
लूओं की
लपटों के साँप,
पग–पग पर आग-सी जरे !
20 मई 1973