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चौखट पर से देखता है आदमी | चौखट पर से देखता है आदमी | ||
पहचान नहीं पाता घर को | पहचान नहीं पाता घर को | ||
− | उस | + | उस स्त्री का जाना जैसे गायब हो जाना था |
− | सब जगह | + | सब जगह बरबादी के निशान छोड़कर । |
− | + | अस्त-व्यस्त दिखता है सारा कमरा, | |
कितनी क्षति हुई | कितनी क्षति हुई | ||
देख नहीं पा रहा वह आदमी | देख नहीं पा रहा वह आदमी | ||
− | सिरदर्द और | + | सिरदर्द और आंसुओं के कारण । |
सुबह से कानों में गूँज रहा कुछ शोर-सा | सुबह से कानों में गूँज रहा कुछ शोर-सा | ||
− | वह होश में है या देख रहा है सपना? | + | वह होश में है या देख रहा है सपना ? |
− | + | क्यों आ रहे हैं विचार | |
− | हर क्षण समुद्र के बारे | + | हर क्षण समुद्र के बारे में । |
− | जब | + | जब खिड़कियों पर लगे आले के बीच से |
− | दिखाई नहीं पड़ता | + | दिखाई नहीं पड़ता ईश्वर का संसार |
दूर तक फैला अवसाद | दूर तक फैला अवसाद | ||
− | दिखता हैं समुद्र की | + | दिखता हैं समुद्र की लम्बी निर्जनता की तरह। |
प्रिय लगती थी वह | प्रिय लगती थी वह | ||
इतनी कि प्रिय लगती थी उसकी हर बात | इतनी कि प्रिय लगती थी उसकी हर बात | ||
जैसे प्रिय लगती हैं | जैसे प्रिय लगती हैं | ||
− | समुद्र को अपनी लहरें, अपना | + | समुद्र को अपनी लहरें, अपना तट । |
− | + | तूफ़ान के बाद लहरें | |
जैसे डुबो देती हैं बाँस को, | जैसे डुबो देती हैं बाँस को, | ||
− | उसकी | + | उसकी आत्मा की गहराई में |
चली गई हैं उसकी सारी छवियाँ | चली गई हैं उसकी सारी छवियाँ | ||
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जो विचार से भी परे थे | जो विचार से भी परे थे | ||
नियति के अथाह से | नियति के अथाह से | ||
− | लहरें उसे उठा लाई | + | लहरें उसे उठा लाई थीं पास । |
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− | + | ख़तरों से बचते हुए | |
लहरें उसे ऊपर उठाती रहीं, उठाती रहीं | लहरें उसे ऊपर उठाती रहीं, उठाती रहीं | ||
− | और | + | और अन्तत: ले आईं उसे एकदम पास । |
और जब उसका यह चले जाना | और जब उसका यह चले जाना | ||
− | + | सम्भव है एक ज़बरदस्ती हो | |
चबा डालेगा यह अलगाव | चबा डालेगा यह अलगाव | ||
− | उसकी हड्डियों को अवसाद | + | उसकी हड्डियों को अवसाद समेत । |
− | और आदमी देखता है चारों | + | और आदमी देखता है चारों तरफ़ |
उस स्त्री ने जाने से पहले | उस स्त्री ने जाने से पहले | ||
उलट-पलट कर फेंक दिया है | उलट-पलट कर फेंक दिया है | ||
− | अलमारी की हर | + | अलमारी की हर चीज़ को । |
वह टहलता है इधर-उधर | वह टहलता है इधर-उधर | ||
− | + | अन्धेरा होने से पहले | |
बिखरे चीथड़ों, कपड़ों के नमूनों को | बिखरे चीथड़ों, कपड़ों के नमूनों को | ||
− | समेट कर रख देता है अलमारी | + | समेट कर रख देता है अलमारी में । |
अधसिले कपड़े पर रखी सुई | अधसिले कपड़े पर रखी सुई | ||
− | चुभ जाती है उसकी | + | चुभ जाती है उसकी अँगुली में |
उस क्षण उसे दिखती है वह पूरी-की-पूरी | उस क्षण उसे दिखती है वह पूरी-की-पूरी | ||
− | और धीरे-से रो देता है | + | और धीरे-से रो देता है वह । |
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+ | 1953 | ||
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+ | '''मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह''' | ||
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+ | '''लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए''' | ||
+ | Борис Пастернак | ||
+ | Разлука | ||
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+ | С порога смотрит человек, | ||
+ | Не узнавая дома. | ||
+ | Ее отъезд был как побег. | ||
+ | Везде следы разгрома. | ||
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+ | Повсюду в комнатах хаос. | ||
+ | Он меры разоренья | ||
+ | Не замечает из-за слез | ||
+ | И приступа мигрени. | ||
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+ | В ушах с утра какой-то шум. | ||
+ | Он в памяти иль грезит? | ||
+ | И почему ему на ум | ||
+ | Все мысль о море лезет? | ||
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+ | Когда сквозь иней на окне | ||
+ | Не видно света божья, | ||
+ | Безвыходность тоски вдвойне | ||
+ | С пустыней моря схожа. | ||
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+ | Она была так дорога | ||
+ | Ему чертой любою, | ||
+ | Как моря близки берега | ||
+ | Всей линией прибоя. | ||
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+ | Как затопляет камыши | ||
+ | Волненье после шторма, | ||
+ | Ушли на дно его души | ||
+ | Ее черты и формы. | ||
+ | |||
+ | В года мытарств, во времена | ||
+ | Немыслимого быта | ||
+ | Она волной судьбы со дна | ||
+ | Была к нему прибита. | ||
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+ | Среди препятствий без числа, | ||
+ | Опасности минуя, | ||
+ | Волна несла ее, несла | ||
+ | И пригнала вплотную. | ||
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+ | И вот теперь ее отъезд, | ||
+ | Насильственный, быть может! | ||
+ | Разлука их обоих съест, | ||
+ | Тоска с костями сгложет. | ||
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+ | И человек глядит кругом: | ||
+ | Она в момент ухода | ||
+ | Все выворотила вверх дном | ||
+ | Из ящиков комода. | ||
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+ | Он бродит и до темноты | ||
+ | Укладывает в ящик | ||
+ | Раскиданные лоскуты | ||
+ | И выкройки образчик. | ||
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+ | И, наколовшись об шитье | ||
+ | С невынутой иголкой, | ||
+ | Внезапно видит всю ее | ||
+ | И плачет втихомолку. | ||
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+ | 1953 | ||
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16:29, 18 जुलाई 2022 के समय का अवतरण
चौखट पर से देखता है आदमी
पहचान नहीं पाता घर को
उस स्त्री का जाना जैसे गायब हो जाना था
सब जगह बरबादी के निशान छोड़कर ।
अस्त-व्यस्त दिखता है सारा कमरा,
कितनी क्षति हुई
देख नहीं पा रहा वह आदमी
सिरदर्द और आंसुओं के कारण ।
सुबह से कानों में गूँज रहा कुछ शोर-सा
वह होश में है या देख रहा है सपना ?
क्यों आ रहे हैं विचार
हर क्षण समुद्र के बारे में ।
जब खिड़कियों पर लगे आले के बीच से
दिखाई नहीं पड़ता ईश्वर का संसार
दूर तक फैला अवसाद
दिखता हैं समुद्र की लम्बी निर्जनता की तरह।
प्रिय लगती थी वह
इतनी कि प्रिय लगती थी उसकी हर बात
जैसे प्रिय लगती हैं
समुद्र को अपनी लहरें, अपना तट ।
तूफ़ान के बाद लहरें
जैसे डुबो देती हैं बाँस को,
उसकी आत्मा की गहराई में
चली गई हैं उसकी सारी छवियाँ
यातना भरे जीवन के उन दिनों में
जो विचार से भी परे थे
नियति के अथाह से
लहरें उसे उठा लाई थीं पास ।
असंख्य बाधाओं के बीच
ख़तरों से बचते हुए
लहरें उसे ऊपर उठाती रहीं, उठाती रहीं
और अन्तत: ले आईं उसे एकदम पास ।
और जब उसका यह चले जाना
सम्भव है एक ज़बरदस्ती हो
चबा डालेगा यह अलगाव
उसकी हड्डियों को अवसाद समेत ।
और आदमी देखता है चारों तरफ़
उस स्त्री ने जाने से पहले
उलट-पलट कर फेंक दिया है
अलमारी की हर चीज़ को ।
वह टहलता है इधर-उधर
अन्धेरा होने से पहले
बिखरे चीथड़ों, कपड़ों के नमूनों को
समेट कर रख देता है अलमारी में ।
अधसिले कपड़े पर रखी सुई
चुभ जाती है उसकी अँगुली में
उस क्षण उसे दिखती है वह पूरी-की-पूरी
और धीरे-से रो देता है वह ।
1953
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह
—
लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
Борис Пастернак
Разлука
С порога смотрит человек,
Не узнавая дома.
Ее отъезд был как побег.
Везде следы разгрома.
Повсюду в комнатах хаос.
Он меры разоренья
Не замечает из-за слез
И приступа мигрени.
В ушах с утра какой-то шум.
Он в памяти иль грезит?
И почему ему на ум
Все мысль о море лезет?
Когда сквозь иней на окне
Не видно света божья,
Безвыходность тоски вдвойне
С пустыней моря схожа.
Она была так дорога
Ему чертой любою,
Как моря близки берега
Всей линией прибоя.
Как затопляет камыши
Волненье после шторма,
Ушли на дно его души
Ее черты и формы.
В года мытарств, во времена
Немыслимого быта
Она волной судьбы со дна
Была к нему прибита.
Среди препятствий без числа,
Опасности минуя,
Волна несла ее, несла
И пригнала вплотную.
И вот теперь ее отъезд,
Насильственный, быть может!
Разлука их обоих съест,
Тоска с костями сгложет.
И человек глядит кругом:
Она в момент ухода
Все выворотила вверх дном
Из ящиков комода.
Он бродит и до темноты
Укладывает в ящик
Раскиданные лоскуты
И выкройки образчик.
И, наколовшись об шитье
С невынутой иголкой,
Внезапно видит всю ее
И плачет втихомолку.
1953