भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"यदि तुम्हारी आँखें चन्द्रमा के रंग की न होतीं / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पाब्लो नेरूदा |अनुवादक=विनीत मोह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

10:41, 4 अगस्त 2022 के समय का अवतरण

सॉनेट — 8

यदि तुम्हारी आँखें चन्द्रमा के रंग की न होतीं,
मृत्तिका भरे दिवस-सी और कार्य और अग्नि
यदि तुम में केन्द्रित होते हुए भी, वायु-सी चपल गति से नहीं चली
काश ! तुम न होतीं तृणमणि रंग का सप्ताह,

नहीं होती पीत क्षण
जब पतझड़ लताओं से चढ़ता है ऊपर की ओर;
यदि तुम नहीं होतीं रोटी, जिससे सुगन्धित चन्द्रमा
माण्डता है, छिड़ककर इसके आटे को आकाश में,

ओह, मेरी सर्वप्रिय, मैं तुम्हें नहीं कर सका इतना प्रेम !
किन्तु जब मैं पकड़ता हूँ तुम्हें, मैं पकड़ता हूँ वह सबकुछ जो है —
रेत, समय, बारिश के वृक्ष,

सबकुछ जीवित है, जिससे मैं रह सकूँ जीवित :
मैं सब देख सकता हूँ बिना चले हुए :
मैं तुम्हारे जीवन में देखता हूँ प्रत्येक को जो है जीवित ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनीत मोहन औदिच्य

लीजिए, अब इस रचना का अँग्रेज़ी अनुवाद पढ़िए
          Pablo Neruda
           Sonnet VIII

If your eyes were not the color of the moon,
of a day full of clay, and work, and fire,
if even held-in you did not move in agile grace like the air,
if you were not an amber week,

not the yellow moment
when autumn climbs up through the vines;
if you were not that bread the fragrant moon
kneads, sprinkling its flour across the sky,

oh, my dearest, I could not love you so!
But when I hold you I hold everything that is --
sand, time, the tree of the rain,

everything is alive so that I can be alive:
without moving I can see it all:
in your life I see everything that lives.

 Translate from spanish by Ignite UI

लीजिए, अब इस रचना को मूल स्पानी भाषा में पढ़िए
             Neruda, Pablo
               Soneto VIII

Si no fuera porque tus ojos tienen color de luna,
de día con arcilla, con trabajo, con fuego,
y aprisionada tienes la agilidad del aire,
si no fuera porque eres una semana de ámbar,

si no fuera porque eres el momento amarillo
en que el otoño sube por las enredaderas
y eres aún el pan que la luna fragante
elabora paseando su harina por el cielo,

oh, bienamada, yo no te amaría!
En tu abrazo yo abrazo lo que existe,
la arena, el tiempo, el árbol de la lluvia,

y todo vive para que yo viva:
sin ir tan lejos puedo verlo todo:
veo en tu vida todo lo viviente.