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ओ प्रिया ! / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
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ओ प्रिया !
रचनाकार | पाब्लो नेरूदा (अनुवाद : विनीत मोहन औदिच्य) |
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प्रकाशक | ब्लैक ईगल बुक्स, ई-312, ट्राइदेण्ट गैलेक्सी, कालिंगा नगर, भुबनेश्वर - 751003, ओडिशा, भारत। |
वर्ष | 2021 |
भाषा | स्पानी (स्पैनिश) |
विषय | प्रेम कविताएँ |
विधा | सॉनेट |
पृष्ठ | इस किताब का समर्पण इस प्रकार है : प्रत्येक अनुरक्त हृदय को सादर समर्पित। |
ISBN | 978-1-64560-179-1 |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
इस पुस्तक में संकलित रचनाएँ
भाग एक : प्रातः काल
- मेतिल्दा : नाम एक पौधे या चट्टान का या मदिरा का / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
- प्रेम, कितना लम्बा रास्ता है चुम्बन तक पहुँचने के लिए / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
- कटु प्रेम, काँटेदार भावनाओं की झाड़ी में / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
- तुम स्मरण करोगी वह उछलता झरना / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
- मैंने नहीं गही तुम्हारी रात या पवन या भोर / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
- वन में खोकर मैंने तोड़ा एक अन्धेरी शाख को / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
- मैंने कहा — आओ मेरे साथ / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
- यदि तुम्हारी आँखें चन्द्रमा के रंग की न होतीं / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
- वहाँ जहाँ लहरें बिखरती हैं व्यग्र चट्टानों पर / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
- मृदु है यह सौन्दर्य — मानो हो संगीत और काष्ठ / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
- मैं करता हूँ लालसा तुम्हारे मुख, स्वर और केशों की / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
- पूर्ण नारी, मांस-सेव, दहकता चन्द्रमा / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
- प्रकाश जो उठता है तुम्हारे पैरों से केशों तक / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
- नहीं है मेरे पास तुम्हारे केशों का उत्सव मनाने का पर्याप्त समय / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
- यह धरा जानती रही है तुम्हें लम्बे समय से / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
- मुझे पसन्द है कि तुम मुट्ठी भर धरा हो / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
- मैं तुम्हें साल्ट रोज़, कार्नेशन या पुखराज मानकर / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
- तुम बहती हो पर्वत शृंखलाओं में पवन जैसी / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
- जबकी इस्ला नीग्रा का विशाल समुद्री झाग / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
- मेरी कुरूप प्रिया, तुम हो एक मलिन शाह-बलूत / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
- यदि मेरे माध्यम से प्रेम फैलाए अपना स्वाद / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
- ओ मेरी प्रिया, कितनी बार किया है तुम्हें प्रेम बिना देखे / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
- प्रकाश के लिए अग्नि, रोटी के लिए विद्वेषपूर्ण चन्द्रमा / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
- प्रेम, प्रेम, उठते गए मेघ आकाश की मीनार तक / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
- तुम्हें प्रेम करने से पहले / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
- न तो इक्वीक के टीलों का अद्भुत्त रंग / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
- निर्वस्त्र, तुम हो सहज अपने हाथों में एक सी / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
- प्रेम, बीज से बीज तक, ग्रह से ग्रह तक / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
- तुम आती हो दरिद्रता से, दक्षिण के निकेतों से / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
- द्वीपसमूह के देवदार से सघन हैं तुम्हारे केश / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
- मेरी अस्थियों की नन्ही साम्राज्ञी, पहनाता हूँ मुकुट / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
- अपनी सच्चाइयों के साथ यह घर ढेर हो गया / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
भाग दो : दोपहर
- / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
- / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य
- / पाब्लो नेरूदा / विनीत मोहन औदिच्य