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"वो सो रहा था दीप्तिमान / बरीस पास्तेरनाक / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर

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बलूत काठ से बने पालने में वो सो रहा था दीप्तिमान,
 
बलूत काठ से बने पालने में वो सो रहा था दीप्तिमान,
 
ज्यों किसी वृक्ष के खोखल में गिरे चन्द्रकिरण प्रभावान ।   
 
ज्यों किसी वृक्ष के खोखल में गिरे चन्द्रकिरण प्रभावान ।   
बदल लिया गया था उसे भेड़ की खाल के फ़रकोट से
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अब पहना दिया गया था उसे भेड़ की खाल का फ़रकोट  
बैल के नथुनों से बदला था उसे औ’ किसी गधे के होंठ से
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उसके नथुने थे बैलों के जैसे और किसी गधे के जैसे होंठ ।
 
    
 
    
 
वे खड़े हुए थे छाँव में ज्यों किसी पशुबाड़े के धुन्धलके में,  
 
वे खड़े हुए थे छाँव में ज्यों किसी पशुबाड़े के धुन्धलके में,  
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दूर किया पालने से इस तरह वह जादूगर, सयाना मायावी ।  
 
दूर किया पालने से इस तरह वह जादूगर, सयाना मायावी ।  
  
तब उसने देखा पीछे मुड़कर माँ मरियम को गुरूर से,  
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अतिथि सी मरियम कुँवारी को, देखा गुफ़ा-द्वार से उसने भीतर,
क्रिसमस का सितारा झाँक रहा था, अतिथि-सा वहाँ दूर से ।  
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क्रिसमस का तारा झाँक रहा था, वहाँ आसमान से धरती पर ।  
  
  
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Ему заменяли овчинную шубу
 
Ему заменяли овчинную шубу
 
Ослиные губы и ноздри вола.
 
Ослиные губы и ноздри вола.
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Стояли в тени, словно в сумраке хлева,
 
Стояли в тени, словно в сумраке хлева,
 
Шептались, едва подбирая слова.
 
Шептались, едва подбирая слова.
 
Вдруг кто-то в потёмках, немного налево
 
Вдруг кто-то в потёмках, немного налево
 
От яслей рукой отодвинул волхва,
 
От яслей рукой отодвинул волхва,
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И тот оглянулся: с порога на Деву,
 
И тот оглянулся: с порога на Деву,
 
Как гостья, смотрела звезда Рождества.
 
Как гостья, смотрела звезда Рождества.
 
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10:57, 20 अगस्त 2022 का अवतरण

डॉ० जिवागो’ उपन्यास में शामिल एक कविता - 2

बलूत काठ से बने पालने में वो सो रहा था दीप्तिमान,
ज्यों किसी वृक्ष के खोखल में गिरे चन्द्रकिरण प्रभावान ।
अब पहना दिया गया था उसे भेड़ की खाल का फ़रकोट
उसके नथुने थे बैलों के जैसे और किसी गधे के जैसे होंठ ।
  
वे खड़े हुए थे छाँव में ज्यों किसी पशुबाड़े के धुन्धलके में,
फुसफुसा रहे थे आपस में वे, औ’ शब्द बुन रहे थे बहके से ।
तभी किसी ने धकेल दिया बाएँ उसे उस अन्धेरे में दुनियावी,
दूर किया पालने से इस तरह वह जादूगर, सयाना मायावी ।

अतिथि सी मरियम कुँवारी को, देखा गुफ़ा-द्वार से उसने भीतर,
क्रिसमस का तारा झाँक रहा था, वहाँ आसमान से धरती पर ।


मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय
 
लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
                   Борис Пастернака
Стихотворение из романа «Доктор Живаго»

Он спал, весь сияющий, в яслях из дуба,
Как месяца луч в углубленье дупла.
Ему заменяли овчинную шубу
Ослиные губы и ноздри вола.

Стояли в тени, словно в сумраке хлева,
Шептались, едва подбирая слова.
Вдруг кто-то в потёмках, немного налево
От яслей рукой отодвинул волхва,

И тот оглянулся: с порога на Деву,
Как гостья, смотрела звезда Рождества.