"याद है क्या तुम्हें / अलेक्सान्दर ब्लोक / वरयाम सिंह" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अलेक्सान्दर ब्लोक |अनुवादक=वरया...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 35: | पंक्ति 35: | ||
दुनिया दोबारा दिखने लगती है अजनबी | दुनिया दोबारा दिखने लगती है अजनबी | ||
रंगीन कुहरे से घिरी हुई। | रंगीन कुहरे से घिरी हुई। | ||
+ | |||
+ | '''मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह''' | ||
</poem> | </poem> |
10:28, 6 सितम्बर 2022 के समय का अवतरण
याद है क्या तुम्हें वह दिन
जब सोया पड़ा था हरा जल,
जब हमारे सुस्त तट पर
पंक्तिबद्ध प्रवेश किया था चार जलयानों ने ?
मटमैले रंग के थे वे चार,
परेशान करते रहे देर तक, ये सवाल
महत्वपूर्ण व्यक्तियों की तरह हमारे सामने
चल रहे थे साँवले-से चार नाविक।
दुनिया हो गई थी विशाल, आकर्षक
तभी अचानक पीछे मुड़ने लगे युद्धपोत,
दिखाई दे रहा था किस तरह वे
छिप गए समुद्र और रात के अंधकार में।
सेमाफोर ने दिए अंतिम संकेत,
उदास टिमटिमाने लगे प्रकाश-स्तंभ,
लौट आया था समुद्र
अपनी पुरानी दिनचर्या में।
बहुत कम चीजों की जरूरत
रहती है हम शिशुओं को इस जीवन में
कि मामूली-सी किसी नई चीज पर
खिल उठता है हमारा मन।
यों ही खरोंचना जलयानों पर
जेबी चाकू से दूर के देशों की धूल -
दुनिया दोबारा दिखने लगती है अजनबी
रंगीन कुहरे से घिरी हुई।
मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह