भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तबाही / शंख घोष / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शंख घोष |अनुवादक=अनिल जनविजय |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
19:31, 23 अक्टूबर 2022 के समय का अवतरण
हे ईश्वर !
क्या तबाह कर देने वाले रास्ते पर
चला था मैं ?
मेरी तबाही के
ज़िम्मेदार हो तुम ही
पूरी तरह से
अपने दिल की आपा-धापी के बीच
तुम्हारी बड़ी-सी मुट्ठी को पकड़कर
मैंने पुण्य कटोरे में भरकर रखा था
शाम के समय
पर तुम्हारा कहना था
कि पुण्य
बिखर जाते हैं ... बिखर जाते हैं ...
मेरी तबाही के ज़िम्मेदार
तुम ही हो
मेर्रे भगवान !
मूल बांग्ला से अनुवाद : अनिल जनविजय