भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अपना दर्द / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |अनुवा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

04:19, 15 नवम्बर 2022 के समय का अवतरण

अपना दर्द किसी से नहीं
हर्गिज कहना है
नागों के साथ हमें
आजीवन रहना है।
अपने दर्द को जो भी
इधर-उधर कहते हैं।
सबसे अधिक दुखी
सिर्फ़ वे ही रहते हैं।
दर्द का क्या, नदी-सा
एक दिन बह जाएगा।
और पीछे सिर्फ़ कुछ
रेत ही रह जाएगा।
दुनिया में रहने के लिए
कुछ तो सहना है।
नागों से क्यों डरें-
वे किसी को तो डँसेंगे
उनके मोहपाश में
कुछ तो जरूर फँसेंगे।
डँसे जाने पर भी
इस जहर को हटाना है
ढूँढकर कहीं से भी
सुधा हमें ही लाना है।
सबके दिलों में रात-दिन
सुधा बन बहना है।। ङ
(30-5-99ः आकाशवाणी अम्बिकापुर-20-12-99, सवेरा संकेत दीपावली विशेषांक-2000)