भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बाँसुरी यदि हो सके तो / कल्पना 'मनोरमा'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 10: | पंक्ति 10: | ||
मत बजाना। | मत बजाना। | ||
− | आग चूल्हे में | + | आग चूल्हे में सिमटकर |
खो गई है | खो गई है | ||
− | भूख आँचल से | + | भूख आँचल से लिपटकर |
सो गई है | सो गई है | ||
सो गया है ऊब कर दिन | सो गया है ऊब कर दिन |
04:42, 30 नवम्बर 2022 के समय का अवतरण
बाँसुरी यदि हो सके तो
मत बजाना।
आग चूल्हे में सिमटकर
खो गई है
भूख आँचल से लिपटकर
सो गई है
सो गया है ऊब कर दिन
मत जगाना।
हाथ ले टूटे सितारे
रात रोती
आँसुओं से स्वयं का
आँचल भिगोती
हो सके तो दीप की लौ
मत बुझाना।
साँस लेती साँस तो
बजता है पिंजर
पीर रखती है हमेशा
साथ खंजर
मौन मन को हो सके तो
मत बुलाना।