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"जानते सब हैं बोलता नहीं है कोई भी / डी .एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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आग में हाथ डालता नहीं है कोई भी
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ग़म ग़रीबों के बांटता नहीं है कोई भी
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दूर से देखते हैं लोग पाप होते हुए
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यूं मगर खून  खौलता नहीं है कोई भी
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सब परेशान भेड़ियों के ख़ौफ़ से हैं मगर
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सामना करना चाहता नहीं है कोई भी
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कैसे दंगा हुआ यह राज़ ही रहा अब तक
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उसके बारे में पूछता नहीं है कोई भी
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जिसको भी देखिए वो है छुपा  मुखौटों में
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अस्ल चेहरे में दीखता नहीं है कोई भी
 
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20:58, 14 दिसम्बर 2022 के समय का अवतरण

जानते सब हैं बोलता नहीं है कोई भी
आंख सबके है देखता नहीं है कोई भी

कैसे महफूज़ फिर रहेगी ये बस्ती यारो
आग में हाथ डालता नहीं है कोई भी

सिर्फ़ बातें ही लोग ज़ोरदार करते हैं
ग़म ग़रीबों के बांटता नहीं है कोई भी

दूर से देखते हैं लोग पाप होते हुए
यूं मगर खून खौलता नहीं है कोई भी

सब परेशान भेड़ियों के ख़ौफ़ से हैं मगर
सामना करना चाहता नहीं है कोई भी

कैसे दंगा हुआ यह राज़ ही रहा अब तक
उसके बारे में पूछता नहीं है कोई भी

जिसको भी देखिए वो है छुपा मुखौटों में
अस्ल चेहरे में दीखता नहीं है कोई भी