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"है क़फ़स में ज़िन्दगानी क्या बताऊँ / डी .एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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दर्दे दिल की दास्तां किसको सुनाऊं
  
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भागने के रास्ते हैं बंद सारे
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सोच करके बस यही मैं छटपटाऊँ
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टूट जायेगा किसी मासूम का दिल
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वो अगर खुश है तो क्यों उसको रुलाऊं
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आग से भी डर लगे, तूफ़ान  से भी
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फूस का है घर मेरा कैसे बचाऊं
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जो अंधेरों में जले हैं साथ मेरे
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उन चिराग़ों को भला कैसे बुझाऊं
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बस यही हासिल रहा है  ज़िंदगी का
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आंसुओं का घूंट पीकर मुस्कराऊं
 
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22:04, 14 दिसम्बर 2022 के समय का अवतरण

है क़फ़स में ज़िन्दगानी क्या बताऊं
दर्दे दिल की दास्तां किसको सुनाऊं

भागने के रास्ते हैं बंद सारे
सोच करके बस यही मैं छटपटाऊँ

टूट जायेगा किसी मासूम का दिल
वो अगर खुश है तो क्यों उसको रुलाऊं

आग से भी डर लगे, तूफ़ान से भी
फूस का है घर मेरा कैसे बचाऊं

जो अंधेरों में जले हैं साथ मेरे
उन चिराग़ों को भला कैसे बुझाऊं

बस यही हासिल रहा है ज़िंदगी का
आंसुओं का घूंट पीकर मुस्कराऊं