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"तेरे अधरों के सुर / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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गुंजित हो  धरा - गगन  ये
 
गुंजित हो  धरा - गगन  ये
 
मन -प्राण सुरभित हो खिलें।
 
मन -प्राण सुरभित हो खिलें।
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    कण्ठ लग जाओ कभी जो
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    यह शीत मन का दूर हो।
  
 
जब सफ़र हो आखिरी तो
 
जब सफ़र हो आखिरी तो
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कह सके ना जो उम्रभर
 
कह सके ना जो उम्रभर
 
सब वह तुमसे है कहना।
 
सब वह तुमसे है कहना।
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  मुझे वह हाला पिलादो
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  ये मन मगन, तन चूर हो।
  
 
मरुभूमि की प्यास  मेरी
 
मरुभूमि की प्यास  मेरी
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अँजुरी भर न पी सके हम
 
अँजुरी भर न पी सके हम
 
कितनी बड़ी यह त्रासदी!
 
कितनी बड़ी यह त्रासदी!
 
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  है बस इतना ही कहना
कण्ठ लग जाओ कभी जो
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  'नयनों का तुम्हीं नूर हो।'
यह शीत मन का दूर हो।
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मुझे वह हाला पिलादो
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ये मन मगन, तन चूर हो।
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11:48, 6 जनवरी 2023 के समय का अवतरण


मेरे अधर की बाँसुरी
तेरे अधर के सुर मिलें,
गुंजित हो धरा - गगन ये
मन -प्राण सुरभित हो खिलें।
     कण्ठ लग जाओ कभी जो
    यह शीत मन का दूर हो।

जब सफ़र हो आखिरी तो
तुम्हीं मेरे पास रहना ।
कह सके ना जो उम्रभर
सब वह तुमसे है कहना।
  मुझे वह हाला पिलादो
  ये मन मगन, तन चूर हो।

मरुभूमि की प्यास मेरी
और तुम हो निर्मल नदी
अँजुरी भर न पी सके हम
कितनी बड़ी यह त्रासदी!
   है बस इतना ही कहना
   'नयनों का तुम्हीं नूर हो।'
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