भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आदमी ख़ाली, बड़ी गाली / रामकुमार कृषक" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामकुमार कृषक |अनुवादक= |संग्रह=स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

17:39, 9 जनवरी 2023 के समय का अवतरण

आदमी ख़ाली
बड़ी गाली
जो इसको वक़्त देता है !

मत घुसो यों
खोपड़ी से
रीढ़ में इसकी
न नापो पेट
सहने दो,
ये ठण्डी साँस
माथे की लकीरें
ढपलियों का ढोंग
रहने दो
इसे हर रोज़ दहने दो,

गालियाँ क्या
गोलियाँ जब झेल जाएगा
उठेगा / आग होगा
वक़्त से आँखें मिलाएगा,

और जब यों
आदमी
करवट बदलता है
सज़ाएँ सख़्त देता है !

5-10-1976