भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"धरती पर कवि (तीन) / कुमार कृष्ण" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार कृष्ण |अनुवादक= |संग्रह=धरत...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

22:47, 22 फ़रवरी 2023 के समय का अवतरण

सूख जाएँ यदि धरती के पोखर
मैं आँखों में बचे पानी से
सींच लूँगा कविता की जड़ें
पक्षी आएँ
बनाएं कविता के पेड़ों पर अपने घर
बस जाए मधुमक्खियों का छोटा सा कुनबा
शायद इसी तरह बचा रहे-
धरती पर संगीत
बची रहे धरती पर मिठास
डराती है मुझे नींद में भी-
राजा की तलवार
कैसे बचाऊँ शब्दों का परिवार
कैसे बचाऊँ कविता का जीवन
परेशान करते हैं बार-बार ये सवाल
फिर भी बार-बार बोता हूँ-
कविता के बीज इस धरती पर।