भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मिलने जुलने का सिलसिला रखिये / मोहम्मद मूसा खान अशान्त" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहम्मद मूसा खान अशान्त |अनुवादक=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

17:27, 28 फ़रवरी 2023 के समय का अवतरण

मिलने जुलने का सिलसिला रखिये
दरमियां फिर भी फ़ासला रखिये

रेत पर भी महल बना लेंगे
दिल में भरपूर हौसला रखिये

आएगा ही बहार का मौसम
घर के दरवाजों को खुला रखिये

कुछ भी कहता रहे ज़माना पर
आप बस अपना फैसला रखिये

हँस के सह लेंगे हर सितम मूसा
अपना चेहरा खिला खिला रखिये