भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बुरे नहीं थे दिन जो निकल गए / भवानीप्रसाद मिश्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भवानीप्रसाद मिश्र |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:42, 16 मार्च 2023 के समय का अवतरण

बुरे नहीं थे दिन जो निकल गए;
नए जो आए हैं वे तो
इतने अच्छे हैं कि आपने पत्र भेजकर गाए हैं !

यों तो मैं दिनों के मामले में विशेषज्ञ हूँ
मगर इस क्षण मन कहीं दूर किसी झंझट में पड़ा था
इसलिए कृतज्ञ हूँ कि आपने
बदले हुए मौसम की याद दिला दी
लदे हुए फूलों की जैसे कोई डाली हिला दी ।

और अब किसी झंझट में
नहीं पड़ा हूँ मैं
नए राशि-राशि मौसम के फूलों से
घिरा खड़ा हूँ मैं ।

7 जनवरी 1974

यह कविता कवि की हस्तलिखिए मूल पाण्डुलिपि से लेकर यहाँ टाईप की गई है।