भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कोई होगा ख़सारा लग रहा है / प्रमोद शर्मा 'असर'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद शर्मा 'असर' |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:18, 20 मार्च 2023 के समय का अवतरण
कोई होगा ख़सारा लग रहा है ।
वो कुछ दिन से ख़फ़ा सा लग रहा है ।।
किसी की भूख मिटती ही नहीं और,
किसी को सब तमाशा लग रहा है ।
हुरुफ़ तो ख़त के सारे मिट गए पर,
ये ख़ुशबू से तुम्हारा लग रहा है ।
परों को तोलते हैं रोज़ ताइर,
मुझे अब डर ख़ुदारा लग रहा है ।
नहीं सीखी न तूने हेरा फेरी,
तेरा मुश्किल गुज़ारा लग रहा है ।
अयादत को तेरा ये घर पे आना,
न जाने क्यों मुदावा लग रहा है।
ग़ज़ल उस पर कहूँ कैसे 'असर' मैं ?
ग़ज़ल जो ख़ुद सरापा लग रहा है ।