भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ज़माने पेश मत आ बेरुख़ी से / प्रमोद शर्मा 'असर'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद शर्मा 'असर' |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:19, 20 मार्च 2023 के समय का अवतरण
ज़माने पेश मत आ बेरुख़ी से,
जुदा फ़ितरत है अपनी तो सभी से।
नशा दौलत न कुर्सी का हो जिसको,
अभी मिलना है ऐसे आदमी से।
अलग ही शख़्शियत है तेरी वरना,
कहाँ खुलते हैं हम इक अजनबी से।
तेरा वादा वफ़ा वो कैसे होगा,
किया तूने जो हमसे बेदिली से।
जहां में जिनका हो किरदार रौशन,
नहीं डरते कभी वो तीरगी से।
कहें कैसा लगा नहले पे दहला,
हुनर सीखा है हमने आप ही से।
मिले धोखे भले ही हर क़दम पर,
'असर' शिकवा नहीं है ज़िन्दगी से।