भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जो अपने आप से अपनी शिकायत करते रहते हैं / प्रमोद शर्मा 'असर'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद शर्मा 'असर' |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:20, 20 मार्च 2023 के समय का अवतरण
जो अपने आप से अपनी शिकायत करते रहते हैं।
वही किरदार की अपने हिफ़ाज़त करते रहते हैं ।।
वो हमसाया है बेशक पर करे है काम दुश्मन का,
समझता कुछ नहीं जब तक शराफ़त करते रहते हैं ।
बड़े बेशक हुए बच्चे मगर अब भी ये आलम है,
उन्हें गाहे-बगाहे हम हिदायत करते रहते हैं ।
वो मालिक है हमें कुछ दे न दे ये मस्लहत उसकी ,
इबादत काम है अपना इबादत करते रहते हैं ।
ज़रा से फ़ायदे के वास्ते हम भूल कर सब कुछ,
'असर' रिश्तों की आए-दिन तिजारत करते रहते हैं ।