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"बुनाई का दुख -2 / कमल जीत चौधरी" के अवतरणों में अंतर

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रंग-बिरंगे
कच्चे-पक्के
पतले-मोटे
रेशमी सूती धागे लेकर
बुनती हूँ रोज़ अपना आप —

तुम एक ही झटके में
उधेड़ देते हो मुझे
मेरी प्रत्येक बुनाई का अन्तिम सिरा
तुम्हारे पास है ।