भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"किताबें, डायरियाँ और क़लम / कमल जीत चौधरी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमल जीत चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{K...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:54, 17 मई 2023 के समय का अवतरण
किताबें
बन्द होती जा रही हैं
बिना खिड़कियाँ - रोशनदान
वाले कमरों में
डायरियाँ
खुली हुई फड़फड़ा रही हैं
बीच चौराहों में
क़लम
बची है सिर्फ़
हस्ताक्षर के लिए ।