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फ़ौलादी कवि
जब इन्हें पीटता है
देवियाँ और ऊँचे स्वरों में गाती हैं
सूजी आँखों से
वे उसका
आदर करती हैं
पूँछ मटकाती हुई
कुतियों की तरह
उनके नितम्ब फड़कते हैं पीड़ा से
और जाँघें वासना से ।
(1953)
मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : मोहन थपलियाल