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"कठपुतली / भवानीप्रसाद मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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याने कोरे काठ की रहना है | याने कोरे काठ की रहना है | ||
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20:56, 28 मई 2023 के समय का अवतरण
कठपुतली
गुस्से से उबली
बोली — ये धागे
क्यों हैं मेरे पीछे - आगे ?
तब तक दूसरी कठपुतलियाँ
बोलीं कि हाँ हाँ हाँ
क्यों हैं ये धागे
हमारे पीछे - आगे ?
हमें अपने पाँवों पर छोड़ दो,
इन सारे धागों को तोड़ दो !
बेचारा बाज़ीगर
हक्का - बक्का रह गया सुनकर
फिर सोचा अगर डर गया
तो ये भी मर गईं, मैं भी मर गया
और उसने बिना कुछ परवाह किए
ज़ोर - ज़ोर धागे खींचे
उन्हें नचाया !
कठपुतलियों की भी समझ में आया
कि हम तो कोरे काठ की हैं
जब तक धागे हैं, बाज़ीगर है
तब तक ठाट की हैं
और हमें ठाट में रहना है
याने कोरे काठ की रहना है