भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बन्द खिड़की की देह पर / जय गोस्वामी / जयश्री पुरवार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जय गोस्वामी |अनुवादक=जयश्री पुरव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:49, 21 जून 2023 के समय का अवतरण
बन्द खिड़की की देह पर हाथ रखा ।
सफ़ेद दीवाल की देह पर भी ।
गड्ढे बन गए दोनो जगहों पर ।
उन्ही में से एक गड्ढे में आज भी
आँखों पर दूरबीन लगाकर
आकाश की ओर देख रहे है गैलिलियो –
चर्च के निर्देशों से बेख़बर ।
दूसरे गड्ढे के भीतर मेज़ पर किताब - कापी लेकर
बैठे है बरीस पस्तिरनाक ।
उन दोनो गड्ढों के बीच की जगह में खुला-खुला-सा एक चबूतरा
थियेन - आन - मेन ।
चारों ओर फैली हुई हैं छात्र - छात्राओं की मृतदेहें
कुछेक अभी भी हिल रही हैं ।
उनलोगों के ऊपर से अभी -अभी
एक टैंक निकल कर चला गया ।
जयश्री पुरवार द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित