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शहतूत के पेड़ / अश्वघोष

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कल करेंगेरेशम के कीड़ों की खातिरजो भी करनाआज तो, बस, धूप से बातें करें खड़े पेड़ शहतूत के
एक मुद्द्त बाद तोपल भर की निद्रा के भीतरयह लाजवन्तीकिन आँखों को लेकर झाँकें ।द्वार आई हैपत्ती-पत्ती छिन जाएगीप्यार में डूबे हुएकुछ गुनगुने सम्वादअपने साथ लाई हैरह जाएँगी नंगी शाखें ।
क्या कहेगा कल ज़मानासाक्षी हैं ये मौन दिगम्बरसोचकर हम क्यों डरें माली की करतूत के
क्या कभी चिन्ता तो फिर भी एक क्षणबच जाती ,अपनी ख़ुशी सेलुट जाता जब सब कुछ अपना ।भोग पाते हैंआँखें सपना देखें कैसेरोटियों के व्याकरण में हीसमूचा दिन गँवाते हैं सपना तो होता है सपना
इस नियोजित भूमिका कोकरते नहीं कामना फल कीकल तलक सारांश चेले ये अवधूत के घर में धरें
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