"पेटीकोट / दोपदी सिंघार / अम्बर रंजना पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
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बोला, 'बीड़ी लेकर आ' | बोला, 'बीड़ी लेकर आ' | ||
बीड़ी का पूड़ा लेके आई | बीड़ी का पूड़ा लेके आई | ||
− | 'चिकन लेके आ | + | 'चिकन लेके आ रण्डी' |
चिकन ले के आई | चिकन ले के आई | ||
'दारू ला' | 'दारू ला' | ||
− | दारू लेके आई | + | दारू लेके आई । |
− | माफ़ करना | + | माफ़ करना, मेरे क्रान्तिकारी दोस्तो ! |
− | मैं सब लाई जो जो दरोगा ने मंगाया | + | मैं सब लाई, जो जो दरोगा ने मंगाया |
− | मेरी बिटिया भूखी थी घर पर | + | मेरी बिटिया भूखी थी घर पर । |
दरोगा ने माँगा फिर मेरा पेटीकोट | दरोगा ने माँगा फिर मेरा पेटीकोट | ||
मैं उसके मुंह पर थूक आई | मैं उसके मुंह पर थूक आई | ||
− | भागी, पीछे से मारी उसने गोली मेरी | + | भागी, पीछे से मारी उसने गोली मेरी पिण्डली पर |
− | मगर मैंने उतारा नहीं अपना | + | मगर मैंने उतारा नहीं अपना पेटीकोट । |
पेटीकोट-२ | पेटीकोट-२ | ||
पंक्ति 44: | पंक्ति 44: | ||
एक चीर से ढँक लेती है शरीर | एक चीर से ढँक लेती है शरीर | ||
− | आप सर आप मेडम | + | आप सर, आप मेडम |
आप सदियों से नहीं आए हमारे देस | आप सदियों से नहीं आए हमारे देस | ||
− | आपने कहा बैठा नहीं सकता कोई दरोगा | + | आपने कहा — बैठा नहीं सकता कोई दरोगा |
− | किसीको चार दिन चार रात थाने पर | + | किसीको चार दिन चार रात थाने पर । |
− | आप सर आजादी से पहले आए होगे | + | आप सर, आजादी से पहले आए होगे |
हमारे गाँव | हमारे गाँव | ||
− | वो आजादी जो आपके देश को मिली थी १९४७ में | + | वो आजादी, जो आपके देश को मिली थी १९४७ में । |
आप नहीं आए हमारे जंगल | आप नहीं आए हमारे जंगल | ||
पंक्ति 56: | पंक्ति 56: | ||
तो हम औरतें नहीं छोड़ती अपने खसम | तो हम औरतें नहीं छोड़ती अपने खसम | ||
कि दो रोटी लाता है रात को एक टेम लाता है | कि दो रोटी लाता है रात को एक टेम लाता है | ||
− | पर लाता है लात मारता है पर रोटी लाता है | + | पर लाता है, लात मारता है, पर रोटी लाता है |
रोटी है तो दूध है | रोटी है तो दूध है | ||
दूध है तो मेरा बच्चा | दूध है तो मेरा बच्चा | ||
आप नहीं आए हमारे गाँव | आप नहीं आए हमारे गाँव | ||
− | नहीं तो पूछते क्यों औलाद से माया रखती है दोपदी | + | नहीं तो पूछते क्यों — औलाद से माया रखती है दोपदी |
क्या करेगा तेरा बच्चा | क्या करेगा तेरा बच्चा | ||
− | भूखा दिन काटेगा जंगल जंगल भटकेगा और मरेगा | + | भूखा दिन काटेगा, जंगल जंगल भटकेगा और मरेगा |
आप नहीं आए हमारे गाँव | आप नहीं आए हमारे गाँव |
14:04, 12 अगस्त 2023 के समय का अवतरण
नहीं उतारा मैंने अपना पेटीकोट
दरोगा ने बैठाये रखा
चार दिन चार रात
मैंने नहीं उतारा अपना पेटीकोट
मेरी तीन साल की बच्ची अब तक मेरा दूध पीती थी
भूखी रही घर पर
मगर मैंने नहीं उतारा अपना पेटीकोट
मेरी चौसठ साल की माँ ने दिया उस रात
अपना सूखा स्तन मेरी बिटिया के मुंह में
मगर मैंने नहीं उतारा अपना पेटीकोट ।
नक्सल कहकर बैठाया रखा चार दिन चार रात
बोला, 'बीड़ी लेकर आ'
बीड़ी का पूड़ा लेके आई
'चिकन लेके आ रण्डी'
चिकन ले के आई
'दारू ला'
दारू लेके आई ।
माफ़ करना, मेरे क्रान्तिकारी दोस्तो !
मैं सब लाई, जो जो दरोगा ने मंगाया
मेरी बिटिया भूखी थी घर पर ।
दरोगा ने माँगा फिर मेरा पेटीकोट
मैं उसके मुंह पर थूक आई
भागी, पीछे से मारी उसने गोली मेरी पिण्डली पर
मगर मैंने उतारा नहीं अपना पेटीकोट ।
पेटीकोट-२
आपने बताया है
आदिवासी औरत पेटीकोट नहीं पहनती
आदिवासी औरत पोल्का नहीं पहनती
एक चीर से ढँक लेती है शरीर
आप सर, आप मेडम
आप सदियों से नहीं आए हमारे देस
आपने कहा — बैठा नहीं सकता कोई दरोगा
किसीको चार दिन चार रात थाने पर ।
आप सर, आजादी से पहले आए होगे
हमारे गाँव
वो आजादी, जो आपके देश को मिली थी १९४७ में ।
आप नहीं आए हमारे जंगल
आपको नहीं पता पखाने न हो
तो हम औरतें नहीं छोड़ती अपने खसम
कि दो रोटी लाता है रात को एक टेम लाता है
पर लाता है, लात मारता है, पर रोटी लाता है
रोटी है तो दूध है
दूध है तो मेरा बच्चा
आप नहीं आए हमारे गाँव
नहीं तो पूछते क्यों — औलाद से माया रखती है दोपदी
क्या करेगा तेरा बच्चा
भूखा दिन काटेगा, जंगल जंगल भटकेगा और मरेगा
आप नहीं आए हमारे गाँव
नहीं तो बताती
ये जंगल बचाएगा ये जानवर बचाएगा
ये गोली खाएगा ये किसी आदिवासन को
लेकर भाग जाएगा
यहीं हमारी रीत है
आप नहीं आए हमारे गाँव
नहीं तो बताती कि जो लोग आते है आपकी तरफ से
उनकी निगाह बड़ी लम्बी है
आप एक चीर से शरीर ढाँकने की बात करते हो
हम पेटीकोट पोल्के में नंगे दिखते है
आप जरूर ही नहीं आए हमारे गाँव ।