"उतनी दूर मत ब्याहना बाबा ! / निर्मला पुतुल" के अवतरणों में अंतर
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मुझे उतनी दूर मत ब्याहना | मुझे उतनी दूर मत ब्याहना | ||
जहाँ मुझसे मिलने जाने ख़ातिर | जहाँ मुझसे मिलने जाने ख़ातिर | ||
− | घर की बकरियाँ बेचनी पड़े | + | घर की बकरियाँ बेचनी पड़े तुम्हें |
मत ब्याहना उस देश में | मत ब्याहना उस देश में | ||
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वहाँ मत कर आना मेरा लगन | वहाँ मत कर आना मेरा लगन | ||
− | वहाँ तो कतई | + | वहाँ तो कतई नहीं |
जहाँ की सड़कों पर | जहाँ की सड़कों पर | ||
मान से भी ज़्यादा तेज़ दौड़ती हों मोटर-गाडियाँ | मान से भी ज़्यादा तेज़ दौड़ती हों मोटर-गाडियाँ | ||
ऊँचे-ऊँचे मकान | ऊँचे-ऊँचे मकान | ||
और दुकानें हों बड़ी-बड़ी | और दुकानें हों बड़ी-बड़ी | ||
− | |||
उस घर से मत जोड़ना मेरा रिश्ता | उस घर से मत जोड़ना मेरा रिश्ता | ||
जिस घर में बड़ा-सा खुला आँगन न हो | जिस घर में बड़ा-सा खुला आँगन न हो | ||
मुर्गे की बाँग पर जहाँ होती ना हो सुबह | मुर्गे की बाँग पर जहाँ होती ना हो सुबह | ||
− | और शाम | + | और शाम पिछवाडे़ से जहाँ |
− | + | पहाडी़ पर डूबता सूरज ना दिखे । | |
मत चुनना ऐसा वर | मत चुनना ऐसा वर | ||
− | जो पोचाई और हंडिया में | + | जो पोचाई<ref>आदिवासियों की देशी शराब जिसे चावल से बनाते हैं</ref> और हंडिया में |
डूबा रहता हो अक्सर | डूबा रहता हो अक्सर | ||
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जो बात-बात में | जो बात-बात में | ||
बात करे लाठी-डंडे की | बात करे लाठी-डंडे की | ||
− | निकाले तीर-धनुष | + | निकाले तीर-धनुष कुल्हाडी़ |
जब चाहे चला जाए बंगाल, आसाम, कश्मीर | जब चाहे चला जाए बंगाल, आसाम, कश्मीर | ||
ऐसा वर नहीं चाहिए मुझे | ऐसा वर नहीं चाहिए मुझे | ||
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फसलें नहीं उगाई जिन हाथों ने | फसलें नहीं उगाई जिन हाथों ने | ||
जिन हाथों ने नहीं दिया कभी किसी का साथ | जिन हाथों ने नहीं दिया कभी किसी का साथ | ||
− | किसी का बोझ | + | किसी का बोझ नहीं उठाया |
और तो और | और तो और | ||
पंक्ति 70: | पंक्ति 69: | ||
तुम्हारी ख़ातिर | तुम्हारी ख़ातिर | ||
उधर से आते-जाते किसी के हाथ | उधर से आते-जाते किसी के हाथ | ||
− | भेज सकूँ कद्दू-कोहडा, खेखसा, बरबट्टी, | + | भेज सकूँ कद्दू-कोहडा, खेखसा<ref>चठैल, बड़ी बेर जैसे गोल एक सब्जी</ref>, बरबट्टी<ref>बीन्स जैसी एक सब्जी</ref>, |
समय-समय पर गोगो के लिए भी | समय-समय पर गोगो के लिए भी | ||
पंक्ति 84: | पंक्ति 83: | ||
बकरी और शेर | बकरी और शेर | ||
एक घाट पर पानी पीते हों जहाँ | एक घाट पर पानी पीते हों जहाँ | ||
− | वहीं ब्याहना मुझे ! | + | वहीं ब्याहना मुझे! |
उसी के संग ब्याहना जो | उसी के संग ब्याहना जो | ||
− | कबूतर के जोड़ और पंडुक पक्षी की तरह | + | कबूतर के जोड़ और पंडुक<ref>जोड़े में रहने के लिए प्रसिद्ध एक चिड़िया </ref> पक्षी की तरह |
रहे हरदम साथ | रहे हरदम साथ | ||
घर-बाहर खेतों में काम करने से लेकर | घर-बाहर खेतों में काम करने से लेकर | ||
पंक्ति 101: | पंक्ति 100: | ||
जिससे खाया नहीं जाए | जिससे खाया नहीं जाए | ||
मेरे भूखे रहने पर | मेरे भूखे रहने पर | ||
− | उसी से ब्याहना | + | उसी से ब्याहना मुझे। |
+ | |||
+ | ...................................................................... | ||
+ | '''[[त्यति टाढा बिहे नगर्दिनुस्, बुवा/ निर्मला पुतुल / सुमन पोखरेल|यहाँ क्लिक गरेर यस कविताको नेपाली अनुवाद पढ्न सकिन्छ ।]]''' | ||
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23:56, 23 अगस्त 2023 के समय का अवतरण
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बाबा!
मुझे उतनी दूर मत ब्याहना
जहाँ मुझसे मिलने जाने ख़ातिर
घर की बकरियाँ बेचनी पड़े तुम्हें
मत ब्याहना उस देश में
जहाँ आदमी से ज़्यादा
ईश्वर बसते हों
जंगल नदी पहाड़ नहीं हों जहाँ
वहाँ मत कर आना मेरा लगन
वहाँ तो कतई नहीं
जहाँ की सड़कों पर
मान से भी ज़्यादा तेज़ दौड़ती हों मोटर-गाडियाँ
ऊँचे-ऊँचे मकान
और दुकानें हों बड़ी-बड़ी
उस घर से मत जोड़ना मेरा रिश्ता
जिस घर में बड़ा-सा खुला आँगन न हो
मुर्गे की बाँग पर जहाँ होती ना हो सुबह
और शाम पिछवाडे़ से जहाँ
पहाडी़ पर डूबता सूरज ना दिखे ।
मत चुनना ऐसा वर
जो पोचाई<ref>आदिवासियों की देशी शराब जिसे चावल से बनाते हैं</ref> और हंडिया में
डूबा रहता हो अक्सर
काहिल निकम्मा हो
माहिर हो मेले से लड़कियाँ उड़ा ले जाने में
ऐसा वर मत चुनना मेरी ख़ातिर
कोई थारी लोटा तो नहीं
कि बाद में जब चाहूँगी बदल लूँगी
अच्छा-ख़राब होने पर
जो बात-बात में
बात करे लाठी-डंडे की
निकाले तीर-धनुष कुल्हाडी़
जब चाहे चला जाए बंगाल, आसाम, कश्मीर
ऐसा वर नहीं चाहिए मुझे
और उसके हाथ में मत देना मेरा हाथ
जिसके हाथों ने कभी कोई पेड़ नहीं लगाया
फसलें नहीं उगाई जिन हाथों ने
जिन हाथों ने नहीं दिया कभी किसी का साथ
किसी का बोझ नहीं उठाया
और तो और
जो हाथ लिखना नहीं जानता हो "ह" से हाथ
उसके हाथ में मत देना कभी मेरा हाथ
ब्याहना तो वहाँ ब्याहना
जहाँ सुबह जाकर
शाम को लौट सको पैदल
मैं कभी दुःख में रोऊँ इस घाट
तो उस घाट नदी में स्नान करते तुम
सुनकर आ सको मेरा करुण विलाप.....
महुआ का लट और
खजूर का गुड़ बनाकर भेज सकूँ सन्देश
तुम्हारी ख़ातिर
उधर से आते-जाते किसी के हाथ
भेज सकूँ कद्दू-कोहडा, खेखसा<ref>चठैल, बड़ी बेर जैसे गोल एक सब्जी</ref>, बरबट्टी<ref>बीन्स जैसी एक सब्जी</ref>,
समय-समय पर गोगो के लिए भी
मेला हाट जाते-जाते
मिल सके कोई अपना जो
बता सके घर-गाँव का हाल-चाल
चितकबरी गैया के ब्याने की ख़बर
दे सके जो कोई उधर से गुजरते
ऐसी जगह में ब्याहना मुझे
उस देश ब्याहना
जहाँ ईश्वर कम आदमी ज़्यादा रहते हों
बकरी और शेर
एक घाट पर पानी पीते हों जहाँ
वहीं ब्याहना मुझे!
उसी के संग ब्याहना जो
कबूतर के जोड़ और पंडुक<ref>जोड़े में रहने के लिए प्रसिद्ध एक चिड़िया </ref> पक्षी की तरह
रहे हरदम साथ
घर-बाहर खेतों में काम करने से लेकर
रात सुख-दुःख बाँटने तक
चुनना वर ऐसा
जो बजाता हों बाँसुरी सुरीली
और ढोल-मांदर बजाने में हो पारंगत
बसंत के दिनों में ला सके जो रोज़
मेरे जूड़े की ख़ातिर पलाश के फूल
जिससे खाया नहीं जाए
मेरे भूखे रहने पर
उसी से ब्याहना मुझे।
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