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"कविताओं की सुध नहीं / फ़्योदर त्यूत्चेव / वरयाम सिंह" के अवतरणों में अंतर

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कविताओं की तुम्हें अब सुध नहीं
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ओ मेरी आत्मजा रूसी भाषा,
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पकी फ़सल तैयार है काटे जाने के लिए,
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अलौकिक वह अवसर आ गया है नज़दीक अब ।
  
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ढाल बन गया है असत्य आज
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किन्हीं दैवी इच्छाओं के बल,
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विनाश की दे रहा है धमकियाँ
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पूरा विश्व नहीं, बल्कि पूरा नरक !
  
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तुम्हारे लिए वे तैयार कर रहे हैं कारागार,
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तुम्हारे लिए अपयश की वे कर रहे हैं भविष्यवाणी,
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पर, आनेवाले श्रेष्ठ युगों की
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तुम्हीं हो भाषा, जीवन और आलोक !
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ओ, इसी में निहित है वह कठिन परीक्षा —
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इस अन्तिम और निर्णायक संघर्ष में
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धोखा न देना तुम स्वयं अपने को
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और दोषमुक्त सिद्ध होना ईश्वर के सामने ...
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1854
 
'''मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह'''
 
'''मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह'''
 
'''लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए'''
 
'''लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए'''
          Федор Тютчев
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                  Федор Тютчев
            День и ночь
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          Теперь тебе не до стихов…
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Теперь тебе не до стихов,
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О слово русское, родное!
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Созрела жатва, жнец готов,
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Настало время неземное…
  
На мир таинственный духов,
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Ложь воплотилася в булат;
Над этой бездной безымянной,
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Каким-то божьим попущеньем
Покров наброшен златотканный
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Не целый мир, но целый ад
Высокой волею богов.
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Тебе грозит ниспроверженьем…
  
День — сей блистательный покров
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Все богохульные умы,
День, земнородных оживленье,
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Все богомерзкие народы
Души болящей исцеленье,
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Со дна воздвиглись царства тьмы
Друг человеков и богов!  
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Во имя света и свободы!
  
Но меркнет день настала ночь;
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Тебе они готовят плен,
Пришла и с мира рокового
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Тебе пророчат посрамленье,
Ткань благодатную покрова
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Ты лучших, будущих времен
Сорвав, отбрасывает прочь…
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Глагол, и жизнь, и просвещенье!
  
И бездна нам обнажена
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О, в этом испытанье строгом,
С своими страхами и мглами,
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В последней, в роковой борьбе,
И нет преград меж ей и нами —
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Не измени же ты себе
Вот отчего нам ночь страшна!
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И оправдайся перед Богом…
  
1839 г.
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1854 г.
 
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15:43, 25 अगस्त 2023 के समय का अवतरण

कविताओं की तुम्हें अब सुध नहीं
ओ मेरी आत्मजा रूसी भाषा,
पकी फ़सल तैयार है काटे जाने के लिए,
अलौकिक वह अवसर आ गया है नज़दीक अब ।

ढाल बन गया है असत्य आज
किन्हीं दैवी इच्छाओं के बल,
विनाश की दे रहा है धमकियाँ
पूरा विश्व नहीं, बल्कि पूरा नरक !

तुम्हारे लिए वे तैयार कर रहे हैं कारागार,
तुम्हारे लिए अपयश की वे कर रहे हैं भविष्यवाणी,
पर, आनेवाले श्रेष्ठ युगों की
तुम्हीं हो भाषा, जीवन और आलोक !

ओ, इसी में निहित है वह कठिन परीक्षा —
इस अन्तिम और निर्णायक संघर्ष में
धोखा न देना तुम स्वयं अपने को
और दोषमुक्त सिद्ध होना ईश्वर के सामने ...

1854
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह
लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
                  Федор Тютчев
          Теперь тебе не до стихов…

Теперь тебе не до стихов,
О слово русское, родное!
Созрела жатва, жнец готов,
Настало время неземное…

Ложь воплотилася в булат;
Каким-то божьим попущеньем
Не целый мир, но целый ад
Тебе грозит ниспроверженьем…

Все богохульные умы,
Все богомерзкие народы
Со дна воздвиглись царства тьмы
Во имя света и свободы!

Тебе они готовят плен,
Тебе пророчат посрамленье, —
Ты — лучших, будущих времен
Глагол, и жизнь, и просвещенье!

О, в этом испытанье строгом,
В последней, в роковой борьбе,
Не измени же ты себе
И оправдайся перед Богом…

1854 г.