भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पाठशाला खुला दो महाराज / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सर्वेश्वरदयाल सक्सेना |अनुवादक= |...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
{{KKCatGeet}} | {{KKCatGeet}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | पाठशाला खुला दो महाराज | + | पाठशाला खुला दो, महाराज |
− | मोर जिया पढ़ने को चाहे! | + | मोर जिया पढ़ने को चाहे ! |
आम का पेड़ ये | आम का पेड़ ये | ||
− | + | ठूँठे का ठूँठा | |
काला हो गया | काला हो गया | ||
− | हमरा | + | हमरा अँगूठा |
− | यह कालिख हटा दो महाराज | + | यह कालिख हटा दो, महाराज |
मोर जिया लिखने को चाहे | मोर जिया लिखने को चाहे | ||
− | पाठशाला खुला दो महाराज | + | पाठशाला खुला दो, महाराज |
− | मोर जिया पढ़ने को चाहे! | + | मोर जिया पढ़ने को चाहे ! |
− | ’ज’ से | + | ’ज’ से ज़मींदार |
’क’ से कारिन्दा | ’क’ से कारिन्दा | ||
दोनों खा रहे | दोनों खा रहे | ||
− | हमको | + | हमको ज़िन्दा |
− | कोई राह दिखा दो महाराज | + | कोई राह दिखा दो, महाराज |
मोर जिया बढ़ने को चाहे | मोर जिया बढ़ने को चाहे | ||
− | पाठशाला खुला दो महाराज | + | पाठशाला खुला दो, महाराज |
− | मोर जिया पढ़ने को चाहे! | + | मोर जिया पढ़ने को चाहे ! |
अगुनी भी यहाँ | अगुनी भी यहाँ | ||
ज्ञान बघारे | ज्ञान बघारे | ||
− | पोथी | + | पोथी बाँचे |
मन्तर उचारे | मन्तर उचारे | ||
− | उनसे पिण्ड छुड़ा दो महाराज | + | उनसे पिण्ड छुड़ा दो, महाराज |
मोर जिया उड़ने को चाहे | मोर जिया उड़ने को चाहे | ||
− | पाठशाला खुला दो महाराज | + | पाठशाला खुला दो, महाराज |
− | मोर जिया पढ़ने को चाहे! | + | मोर जिया पढ़ने को चाहे ! |
</poem> | </poem> |
13:36, 17 सितम्बर 2023 के समय का अवतरण
पाठशाला खुला दो, महाराज
मोर जिया पढ़ने को चाहे !
आम का पेड़ ये
ठूँठे का ठूँठा
काला हो गया
हमरा अँगूठा
यह कालिख हटा दो, महाराज
मोर जिया लिखने को चाहे
पाठशाला खुला दो, महाराज
मोर जिया पढ़ने को चाहे !
’ज’ से ज़मींदार
’क’ से कारिन्दा
दोनों खा रहे
हमको ज़िन्दा
कोई राह दिखा दो, महाराज
मोर जिया बढ़ने को चाहे
पाठशाला खुला दो, महाराज
मोर जिया पढ़ने को चाहे !
अगुनी भी यहाँ
ज्ञान बघारे
पोथी बाँचे
मन्तर उचारे
उनसे पिण्ड छुड़ा दो, महाराज
मोर जिया उड़ने को चाहे
पाठशाला खुला दो, महाराज
मोर जिया पढ़ने को चाहे !