"बात यह नहीं / योसिफ़ ब्रोदस्की" के अवतरणों में अंतर
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और इसी में पूरा हो जाता है एक दिन । | और इसी में पूरा हो जाता है एक दिन । | ||
− | + | अच्छा हो कि सर्दियाँ आएँ जल्दी-से-जल्दी | |
बुहार कर ले जाएँ | बुहार कर ले जाएँ | ||
इन शहरों और लोगों को | इन शहरों और लोगों को | ||
− | + | शुरुआत वे यहाँ की हरियाली से कर सकती हैं । | |
− | मैं घुस जाऊँगा | + | मैं घुस जाऊँगा बिस्तर में |
बिना कपड़े उतारे | बिना कपड़े उतारे | ||
पढ़ने लगूँगा किसी दूसरे की क़िताब | पढ़ने लगूँगा किसी दूसरे की क़िताब | ||
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पढ़ता जाऊँगा | पढ़ता जाऊँगा | ||
जब तक साल के बाक़ी दिन | जब तक साल के बाक़ी दिन | ||
− | अन्धे के पास से भागे | + | अन्धे के पास से भागे कु्त्ते की तरह |
पहुँच नहीं जाते निर्धारित जगह पर । | पहुँच नहीं जाते निर्धारित जगह पर । | ||
− | हम | + | हम स्वतन्त्र होते हैं उस क्षण |
जब भूल जाते हैं | जब भूल जाते हैं | ||
आततायी के सामने पिता का नाम, | आततायी के सामने पिता का नाम, |
14:38, 18 सितम्बर 2023 के समय का अवतरण
बात यह नहीं है कि दिमाग फिर गया है मेरा,
बस, थका दिया है मुझे यहाँ की गर्मियों ने ।
अलमारी में ढूँढ़ने लगता हूँ कमीज़
और इसी में पूरा हो जाता है एक दिन ।
अच्छा हो कि सर्दियाँ आएँ जल्दी-से-जल्दी
बुहार कर ले जाएँ
इन शहरों और लोगों को
शुरुआत वे यहाँ की हरियाली से कर सकती हैं ।
मैं घुस जाऊँगा बिस्तर में
बिना कपड़े उतारे
पढ़ने लगूँगा किसी दूसरे की क़िताब
किसी भी जगह से
पढ़ता जाऊँगा
जब तक साल के बाक़ी दिन
अन्धे के पास से भागे कु्त्ते की तरह
पहुँच नहीं जाते निर्धारित जगह पर ।
हम स्वतन्त्र होते हैं उस क्षण
जब भूल जाते हैं
आततायी के सामने पिता का नाम,
जब शीराजा के हलवे से अधिक
मीठा लगता है अपने ही मुँह का थूक ।
भले ही हमारा दिमाग़
मोड़ा जा चुका है मेढ़े के सींगों की तरह
पर कुछ भी नहीं टपकता
हमारी नीली ऑंखों से ।