"कविता जी / अजित कुमार" के अवतरणों में अंतर
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मैंने कविता को जिया, | मैंने कविता को जिया, | ||
अपनी कविता जी को | अपनी कविता जी को | ||
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मुँह फुलाकर वे जा बैठीं | मुँह फुलाकर वे जा बैठीं | ||
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जिन्हें मैंने दो-छत्ती में धर दिया था | जिन्हें मैंने दो-छत्ती में धर दिया था | ||
ताकि बच्चों की उछल-कूद के लिए | ताकि बच्चों की उछल-कूद के लिए | ||
− | घर में तनिक जगह तो | + | घर में तनिक जगह तो निकले । |
− | बीते अनुभव से जानता हूँ | + | बीते अनुभव से जानता हूँ — |
छुट्टियाँ ख़त्म होंगी | छुट्टियाँ ख़त्म होंगी | ||
बच्चे वापस चले जाएँगे | बच्चे वापस चले जाएँगे | ||
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या | या | ||
उसके बावजूद | उसके बावजूद | ||
− | क्या पता? | + | क्या पता ? |
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16:14, 18 सितम्बर 2023 के समय का अवतरण
कल मैंने कविता को लिखा नहीं
कल मैंने कविता को जिया
बहुत दिनों बाद
लौटकर घर आए बच्चों के साथ
बैट-बाल खेला,
पहेलियाँ बूझीं
कहानियाँ सुनीं-सुनाई
चाट खाई
वह सब तो ठीक था
और
अपनी जगह ठीक-ठाक रहा
लेकिन यह ख़याल
कि इस तरह
मैंने कविता को जिया,
अपनी कविता जी को
कुछ ख़ास पसन्द नहीं आया ।
मुँह फुलाकर वे जा बैठीं
पुरानी पत्रिकाओं के ग़ट्ठर में
जिन्हें मैंने दो-छत्ती में धर दिया था
ताकि बच्चों की उछल-कूद के लिए
घर में तनिक जगह तो निकले ।
बीते अनुभव से जानता हूँ —
छुट्टियाँ ख़त्म होंगी
बच्चे वापस चले जाएँगे
घोंसले में फैले तिनके समेटने के लिए
हमें छोड़कर
कैरम की गोटें
स्क्रैबिल के अक्षर
देने-पावने के ब्यौरे
क्रेन की बैटरी
जिन्हें हम सहेजेंगे ज़रूर
पर दो-छत्ती में रखी
पुरानी पत्रिकाएँ तो शायद
हमेशा के लिए
वहीं की वहीं रह जाएँगी
रूठी हुई कविता जी
मनुहार के बाद
या
उसके बावजूद
क्या पता ?
आएँ कि न आएँ !