भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कहाँ मानते ढोर / आनन्द बल्लभ 'अमिय'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आनन्द बल्लभ 'अमिय' |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

02:11, 22 सितम्बर 2023 के समय का अवतरण

बारूदी अंधड़ जन्मा है,
फैला तम घनघोर।

डरा डरा-सा लगता गुलशन,
वाँच रहा चालीसा।
हर दंगे से रिश्ता इसका,
एक अदद छत्तीसा।

डटे पड़े हैं रात-रात भर,
जगे अमन की भोर।

केशर की क्यारी में उगती,
नफरत की कंडाली।
सम्बंधों की तुरपन फाड़ी,
बने रहे जंजाली।

पीट पीटकर सुजा दिये पर
कहाँ मानते ढोर?

कंकर, पत्थर औ' एसिड का,
खेला करते खेल।
सोने की चिड़िया घायल की,
लेकर लक्ष्य गुलेल।

घाट घाट का पानी पीकर,
बनते आदम खोर।