"यह बात किसी से मत कहना / देवराज दिनेश" के अवतरणों में अंतर
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यह बात किसी से मत कहना। | यह बात किसी से मत कहना। | ||
− | मैं तेरी | + | मैं तेरी आँखों में बंदी |
− | तू मेरी | + | तू मेरी आँखों में प्रतिक्षण |
− | मैं चलता तेरी | + | मैं चलता तेरी साँस–साँस |
तू मेरे मानस की धड़कन | तू मेरे मानस की धड़कन | ||
मैं तेरे तन का रत्नहार | मैं तेरे तन का रत्नहार | ||
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यह बात किसी से मत कहना!! | यह बात किसी से मत कहना!! | ||
− | हम युगल पखेरू | + | हम युगल पखेरू हँस लेंगे |
कुछ रो लेंगे कुछ गा लेंगे | कुछ रो लेंगे कुछ गा लेंगे | ||
हम बिना बात रूठेंगे भी | हम बिना बात रूठेंगे भी | ||
− | फिर | + | फिर हँस कर तभी मना लेंगे |
अंतर में उगते भावों के | अंतर में उगते भावों के | ||
− | + | जज़्वात किसी से मत कहना! | |
यह बात किसी से मत कहना!! | यह बात किसी से मत कहना!! | ||
− | क्या कहा! कि मैं तो कह | + | क्या कहा! कि मैं तो कह दूँगी! |
कह देगी तो पछताएगी | कह देगी तो पछताएगी | ||
− | पगली इस सारी | + | पगली इस सारी दुनिया में |
बिन बात सताई जाएगी | बिन बात सताई जाएगी | ||
पीकर प्रिये अपने नयनों की बरसात | पीकर प्रिये अपने नयनों की बरसात | ||
− | + | विहँसती ही रहना! | |
यह बात किसी से मत कहना!! | यह बात किसी से मत कहना!! | ||
− | हम युगों युगों के दो साथी | + | हम युगों-युगों के दो साथी |
अब अलग अलग होने आए | अब अलग अलग होने आए | ||
कहना होगा तुम हो पत्थर | कहना होगा तुम हो पत्थर | ||
पर मेरे लोचन भर आए | पर मेरे लोचन भर आए | ||
− | पगली इस जग के अतल–सिंधु | + | पगली इस जग के अतल–सिंधु में |
− | अलग अलग हमको बहना! | + | अलग-अलग हमको बहना! |
− | यह बात किसी से मत कहना | + | यह बात किसी से मत कहना! |
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06:27, 4 अक्टूबर 2023 का अवतरण
तेरे पिंजरे का तोता
तू मेरे पिंजरे की मैना
यह बात किसी से मत कहना।
मैं तेरी आँखों में बंदी
तू मेरी आँखों में प्रतिक्षण
मैं चलता तेरी साँस–साँस
तू मेरे मानस की धड़कन
मैं तेरे तन का रत्नहार
तू मेरे जीवन का गहना!
यह बात किसी से मत कहना!!
हम युगल पखेरू हँस लेंगे
कुछ रो लेंगे कुछ गा लेंगे
हम बिना बात रूठेंगे भी
फिर हँस कर तभी मना लेंगे
अंतर में उगते भावों के
जज़्वात किसी से मत कहना!
यह बात किसी से मत कहना!!
क्या कहा! कि मैं तो कह दूँगी!
कह देगी तो पछताएगी
पगली इस सारी दुनिया में
बिन बात सताई जाएगी
पीकर प्रिये अपने नयनों की बरसात
विहँसती ही रहना!
यह बात किसी से मत कहना!!
हम युगों-युगों के दो साथी
अब अलग अलग होने आए
कहना होगा तुम हो पत्थर
पर मेरे लोचन भर आए
पगली इस जग के अतल–सिंधु में
अलग-अलग हमको बहना!
यह बात किसी से मत कहना!