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फूलों के झड़ जाने के बाद,
हर फूल की आत्मा फिर से जन्म लेती है
भगवान बुद्ध के बग़ीचे में ।
स्नेही फूल को जब भी सूर्य बुलाता,
वह सहसा खिलकर मुस्कुराता,
तितलियों को मीठा मकरन्द देता,
इनसानों को अपनी भरपूर सुगन्ध ।
हवा जब भी बुलाती —
इधर आओ ।
सहृदय फूल उसके पीछे-पीछे चल पड़ता ।
इतना ही नहीं,
सूखा फूल भी
बच्चों के काम आ जाता —
खेल-कटोरी में एक व्यंजन बन जाता ।
मूल जापानी से अनुवाद : तोमोको किकुची