भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सुन लो मुखिया अब उधार का उजियारा मंज़ूर नहीं / हरेराम समीप" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरेराम समीप |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 16: | पंक्ति 16: | ||
बाँटे जाने की अब कोशिश दोबारा मंजूर नहीं | बाँटे जाने की अब कोशिश दोबारा मंजूर नहीं | ||
− | जैसा भी हूँ मैं हूँ पूरे जीवन की | + | जैसा भी हूँ मैं हूँ पूरे जीवन की सामर्थ्य लिए |
ये गलीज़ सम्बोधन मुझको ‘बेचारा’ मंजूर नहीं | ये गलीज़ सम्बोधन मुझको ‘बेचारा’ मंजूर नहीं | ||
09:17, 9 दिसम्बर 2023 के समय का अवतरण
सुन लो मुखिया अब उधार का उजियारा मंज़ूर नहीं
ऊँच नीच का हम पर थोपा अँधियारा मंजूर नहीं
खुदगर्ज़ो की सरकारें और न्यायालयसब बन्द करो
सत्ता होगी सिर्फ़ हमारी‚ हरकारा मंजूर नहीं
मेरी बस्ती दिल वालों की‚ सारे मिलकर एक रहें
बाँटे जाने की अब कोशिश दोबारा मंजूर नहीं
जैसा भी हूँ मैं हूँ पूरे जीवन की सामर्थ्य लिए
ये गलीज़ सम्बोधन मुझको ‘बेचारा’ मंजूर नहीं
राजनीति की हिंसक चालें जिसमेंचलती हों हर रोज़
बेशक मंदिर‚ मस्जिद हो या गुरुद्वारा, मंजूर नहीं
मैं ‘समीप’ हिन्दू हूँ पक्का‚ कह द जगसे ये लेकिन
शंख‚ मँजीरा‚ थाली वाला जयकारा मंज़ूर नहीं