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{{KKRachna
|रचनाकार=मधु शुक्ला
|अनुवादक=२९ जनवरी १९६४
|संग्रह=
}}
बरसों से पहुँनाई ।
दो पल के जीवन की खातिर
बोझ सदी के ढोए।ढोए ।
</poem>
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