भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मन तो चाहे अम्बर छूना / मधु शुक्ला" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधु शुक्ला |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatNav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

02:16, 30 जनवरी 2024 के समय का अवतरण

मन तो चाहे अम्बर छूना
पाँव धँसे हैं खाई ।
दूर खड़ी हँसती है मुझपर
मेरी ही परछाई ।

विश्वासों की पर्त खुली तो,
खुलती चली गई ,
सम्बन्धों की बखिया
स्वयं उधड़ती चली गई,
चूर हुए हम स्थितियों से
करके हाथापाई ।

इच्छाओं का कंचन - मृग
किस वन में भटक गया,
बतियाता था जो मुझसे,
वह दर्पण चटक गया,
अपने ही स्वर अब कानों को
देते नहीं सुनाई ।

परिवर्तन की जाने कैसी
उल्टी हवा चली,
धुआँ -धुआँ हो गई दिशाएँ
सूझे नहीं गली,
जमी हुई हर पगडण्डी पर
दुविधाओं की काई ।