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"आँखें बंद पड़ीं गीजर की फिर भी दहता है पानी / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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− | आँखें बंद पड़ीं | + | आँखें बंद पड़ीं गीज़र की फिर भी दहता है पानी। |
− | उनके तन की तपिश न पूछो कैसे सहता है पानी। | + | उनके तन की तपिश न पूछो कैसे सहता है पानी। |
नाज़ुक होठों को छूने तक भूखा रहता बेचारा, | नाज़ुक होठों को छूने तक भूखा रहता बेचारा, | ||
− | जब तक नहीं नहा | + | जब तक नहीं नहा लेते वो प्यासा रहता है पानी। |
− | उनके बालों से बिछुए तक जाने में चुप रहता फिर, | + | उनके बालों से बिछुए तक जाने में चुप रहता फिर, |
− | कल की आशा में सारा दिन कल कल कहता है पानी। | + | कल की आशा में सारा दिन कल-कल कहता है पानी। |
− | एक रेशमी छुवन के पीछे हुआ है ऐसा दीवाना, | + | एक रेशमी छुवन के पीछे हुआ है ऐसा दीवाना, |
− | सूरज | + | सूरज रोज़ बुलाए फिर भी नीचे बहता है पानी। |
− | बाधाएँ जितनी | + | बाधाएँ जितनी ज़्यादा हों उतना ऊपर चढ़ जाता, |
− | हार न माने | + | हार न माने इश्क़ अगर सच्चा हो कहता है पानी। |
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17:21, 24 फ़रवरी 2024 के समय का अवतरण
आँखें बंद पड़ीं गीज़र की फिर भी दहता है पानी।
उनके तन की तपिश न पूछो कैसे सहता है पानी।
नाज़ुक होठों को छूने तक भूखा रहता बेचारा,
जब तक नहीं नहा लेते वो प्यासा रहता है पानी।
उनके बालों से बिछुए तक जाने में चुप रहता फिर,
कल की आशा में सारा दिन कल-कल कहता है पानी।
एक रेशमी छुवन के पीछे हुआ है ऐसा दीवाना,
सूरज रोज़ बुलाए फिर भी नीचे बहता है पानी।
बाधाएँ जितनी ज़्यादा हों उतना ऊपर चढ़ जाता,
हार न माने इश्क़ अगर सच्चा हो कहता है पानी।