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"हम काफ़िया रदीफ़ बहर नाप रहे हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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हम काफ़िया रदीफ़ बहर नाप रहे हैं।
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हम काफ़िया रदीफ़-ओ-बहर नाप रहे हैं।
वो हैं के पाँव पाँव शहर नाप रहे हैं।
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वो हैं के पाँव-पाँव शहर नाप रहे हैं।
  
सब सो रहे हैं चैन से याँ ओढ़ के चद्दर,
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सब सो रहे हैं चैन से अब ओढ़ के चद्दर,
 
सरहद पे रात भर वो पहर नाप रहे हैं।
 
सरहद पे रात भर वो पहर नाप रहे हैं।
  
कुछ भूख से मरे तो कई छोड़ गए घर,
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कुछ भूख से मरे तो कुछ एक छोड़ गए घर,
सूखे का आज भी वो कहर नाप रहे हैं।
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सूखे का आज भी वो क़हर नाप रहे हैं।
  
हम तो गए हैं डूब, मिला आग का दरिया,
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हम तो गए हैं बूड़, पा के आग का दरिया,
 
दुनिया समझ रही है लहर नाप रहे हैं।
 
दुनिया समझ रही है लहर नाप रहे हैं।
  
लोकल के इंतजार में टेशन पे खड़े हम,
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झूटी है न्यूज सब ये जानते हैं मगर हम  
सूरज समझ रहा है सहर नाप रहे हैं।
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कितना छुपा ख़बर में ज़हर नाप रहे हैं।  
 
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10:24, 26 फ़रवरी 2024 के समय का अवतरण

हम काफ़िया रदीफ़-ओ-बहर नाप रहे हैं।
वो हैं के पाँव-पाँव शहर नाप रहे हैं।

सब सो रहे हैं चैन से अब ओढ़ के चद्दर,
सरहद पे रात भर वो पहर नाप रहे हैं।

कुछ भूख से मरे तो कुछ एक छोड़ गए घर,
सूखे का आज भी वो क़हर नाप रहे हैं।

हम तो गए हैं बूड़, पा के आग का दरिया,
दुनिया समझ रही है लहर नाप रहे हैं।

झूटी है न्यूज सब ये जानते हैं मगर हम
कितना छुपा ख़बर में ज़हर नाप रहे हैं।