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"मुर्दे जाग रहे हैं कब्रों और मसानों में / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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मुर्दे जाग रहे हैं कब्रों और मसानों में।
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मुर्दे जाग रहे हैं क़ब्रों और मसानों में।
 
कैसे भूख मिटेगी हलचल है शैतानों में।
 
कैसे भूख मिटेगी हलचल है शैतानों में।
  
धीरे धीरे समझ गए आखिर सारे मुर्गे,  
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धीरे-धीरे समझ गए आख़िर सारे मुर्गे,
दोनों में है जहर हरे केसरिया दानों में।
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दोनों में है ज़हर हरे केसरिया दानों में।
  
 
सब चिड़ियों ने मिलजुल कर कुछ ऐसा जाल बुना,
 
सब चिड़ियों ने मिलजुल कर कुछ ऐसा जाल बुना,
आखेटक आकर फँसते अब रोज मचानों में।
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आखेटक आकर फँसते अब रोज़ मचानों में।
  
कमल, साइकिल, हाथी, हसिया, पंजा सब हैं एक,  
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हाथी, हसिया, पंजा, झाड़ू, कमल सभी एक से,  
मिलजुल कर ये ले जायेंगे देश खदानों में।
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चुन भर लेने से ख़ुद को मत गिनो सयानों में।  
  
 
घूम रहे आतंकी महानगर की सड़कों पर,
 
घूम रहे आतंकी महानगर की सड़कों पर,
खोज रहा कानून झुग्गियों और मकानों में।
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खोज रहा कानून वनों में और मकानों में।
 
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12:43, 26 फ़रवरी 2024 के समय का अवतरण

मुर्दे जाग रहे हैं क़ब्रों और मसानों में।
कैसे भूख मिटेगी हलचल है शैतानों में।

धीरे-धीरे समझ गए आख़िर सारे मुर्गे,
दोनों में है ज़हर हरे केसरिया दानों में।

सब चिड़ियों ने मिलजुल कर कुछ ऐसा जाल बुना,
आखेटक आकर फँसते अब रोज़ मचानों में।

हाथी, हसिया, पंजा, झाड़ू, कमल सभी एक से,
चुन भर लेने से ख़ुद को मत गिनो सयानों में।

घूम रहे आतंकी महानगर की सड़कों पर,
खोज रहा कानून वनों में और मकानों में।