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"साथ चल के भी मिल न पाये हम / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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साथ चल के भी मिल न पाये हम। | साथ चल के भी मिल न पाये हम। | ||
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दौड़ना तब ही सीख पाये हम। | दौड़ना तब ही सीख पाये हम। | ||
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रोज़ उनसे बढ़े सवाये हम। | रोज़ उनसे बढ़े सवाये हम। | ||
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और शिकवा है क्यूँ न आये हम। | और शिकवा है क्यूँ न आये हम। | ||
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या ख़ुदा यूँ न हों पराये हम। | या ख़ुदा यूँ न हों पराये हम। | ||
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धूल बन आसमाँ पे छाये हम। | धूल बन आसमाँ पे छाये हम। | ||
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12:58, 26 फ़रवरी 2024 के समय का अवतरण
साथ चल के भी मिल न पाये हम।
आप थे धूप और साये हम।
वर्ष दो वर्ष लड़खड़ाये हम।
दौड़ना तब ही सीख पाये हम।
जलजले सा वो छू गये हमको,
और इमारत से थरथराये हम।
रोज़ वो काटते गये हमको,
रोज़ उनसे बढ़े सवाये हम।
यूँ बुलाया के दास हों उनके,
और शिकवा है क्यूँ न आये हम।
एक बर्तन में बर्फ़ पानी से,
या ख़ुदा यूँ न हों पराये हम।
यूँ हमें रौंदती गईं सदियाँ,
धूल बन आसमाँ पे छाये हम।