भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आँसुओं को पोंछने का समय / आन्ना अख़्मातवा / राजा खुगशाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आन्ना अख़्मातवा |अनुवादक=राजा खु...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

01:11, 27 फ़रवरी 2024 के समय का अवतरण

 ज़ख़्मी सारस को
पुकारते हैं लोग कूरली...कूरली  !
शरद ऋतु में जब खेत
भुरभुरे और तपे हुए होते हैं

मैं रुग्ण सुनती हूँ उन पुकारों को
हल्के विरल बादल
और घने जंगलों में सुनाई देती है
सुनहरे पंखों की सरसराहट

यही समय है उड़ने का
खेतों और नदी के आसमान में
दूर-दूर तक उड़ने का समय
कपोलों से बहते आँसुओं को
दुर्बल हाथों से पोंछने का समय ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजा खुगशाल