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"सदियाँ गुजर गयीं / कैफ़ी आज़मी" के अवतरणों में अंतर
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उस सर पे झूम के जो घटाएँ गुज़र गयीं | उस सर पे झूम के जो घटाएँ गुज़र गयीं | ||
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दीवाना पूछता है यह लहरों से बार बार | दीवाना पूछता है यह लहरों से बार बार | ||
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अब जिस तरफ से चाहे गुजर जाए कारवां | अब जिस तरफ से चाहे गुजर जाए कारवां | ||
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वीरानियाँ तो सब मिरे दिल में उतर गयीं | वीरानियाँ तो सब मिरे दिल में उतर गयीं | ||
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पैमाना टूटने का कोई गम नहीं मुझे | पैमाना टूटने का कोई गम नहीं मुझे | ||
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15:14, 4 मई 2024 के समय का अवतरण
क्या जाने किसी की प्यास बुझाने किधर गयीं
उस सर पे झूम के जो घटाएँ गुज़र गयीं
दीवाना पूछता है यह लहरों से बार बार
कुछ बस्तियाँ यहाँ थीं बताओ किधर गयीं
अब जिस तरफ से चाहे गुजर जाए कारवां
वीरानियाँ तो सब मिरे दिल में उतर गयीं
पैमाना टूटने का कोई गम नहीं मुझे
गम है तो यह के चाँदनी रातें बिखर गयीं
पाया भी उन को खो भी दिया चुप भी यह हो रहे
इक मुख्तसर सी रात में सदियाँ गुजर गयीं