भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अब नहीं मैं लौट पाऊँगा दुबारा / राहुल शिवाय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल शिवाय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 15: पंक्ति 15:
 
जो कराते मधुमिलन वे
 
जो कराते मधुमिलन वे
 
पंथ सारे खो गये हैं
 
पंथ सारे खो गये हैं
 +
 
मत बहारों के मुझे
 
मत बहारों के मुझे
 
सपने दिखाओ
 
सपने दिखाओ
पंक्ति 20: पंक्ति 21:
  
 
दीप सारे बुझ  
 
दीप सारे बुझ  
चुके हैं मन्नतों के, आस्था के  
+
चुके हैं मन्नतों के, हर प्रथा के
 
सिर्फ अब हैं तैर सकते
 
सिर्फ अब हैं तैर सकते
 
आँख में आँसू व्यथा के
 
आँख में आँसू व्यथा के
 +
 
तुम हृदय में अल्पनाएँ
 
तुम हृदय में अल्पनाएँ
 
मत सजाओ
 
मत सजाओ
पंक्ति 31: पंक्ति 33:
 
पुण्य फल देगी कहाँ यह
 
पुण्य फल देगी कहाँ यह
 
प्रेम की यात्रा अधूरी  
 
प्रेम की यात्रा अधूरी  
 +
 
उम्र भर का शाप मत
 
उम्र भर का शाप मत
 
हृद से लगाओ
 
हृद से लगाओ
 
अब नहीं मैं लौट पाऊँगा दुबारा
 
अब नहीं मैं लौट पाऊँगा दुबारा
 
</poem>
 
</poem>

16:32, 21 मई 2024 के समय का अवतरण

कांपते अधरों से मुझको
मत बुलाओ
अब नहीं मैं लौट पाऊँगा दुबारा

स्वप्न के पत्ते
सहमकर पीतवर्णी हो गये हैं
जो कराते मधुमिलन वे
पंथ सारे खो गये हैं

मत बहारों के मुझे
सपने दिखाओ
अब नहीं मैं लौट पाऊँगा दुबारा

दीप सारे बुझ
चुके हैं मन्नतों के, हर प्रथा के
सिर्फ अब हैं तैर सकते
आँख में आँसू व्यथा के

तुम हृदय में अल्पनाएँ
मत सजाओ
अब नहीं मैं लौट पाऊँगा दुबारा

पूर्ण करनी जिन्दगी की
तीर्थ यात्रा, है जरूरी
पुण्य फल देगी कहाँ यह
प्रेम की यात्रा अधूरी

उम्र भर का शाप मत
हृद से लगाओ
अब नहीं मैं लौट पाऊँगा दुबारा