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"जूही के फूलों के बजाय सफ़ेद चावल ही हैं अधिक सुन्दर / महादेव साहा / सुलोचना" के अवतरणों में अंतर

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19:56, 20 जून 2024 का अवतरण

किसी भी विषय पर शायद यह कविता लिखी जा सकती थी
पिकनिक, मॉर्निंग स्कूल की मिस्ट्रेस
या स्वर्णचंपा की कहानी; शायद पक्षियों का प्रसंग,

पिछले कुछ दिनों से फ़ोन पर तुम्हारी बातें न सुन पाने से
जमा हुआ मेघ,
मन ठीक नहीं, इसे लेकर भी भरी जा सकती थी ये
पंक्तियाँ,
आर्किड या वीपिंग विलो भी हो सकते थे
सहजता से इस कविता का विषय;

लेकिन तीसरी दुनिया के ग़रीब देश के एक कवि के लिए
मनु मियाँ की डेगची की ख़बर भूलना सम्भव नहीं,
मैं इसीलिए टूटे जबड़े वाले हारू शेख की ओर देखकर
अन्तरराष्ट्रीय शोषण के विषय में ही सोचता हूँ,

पेट में भूख है, अभी समझता हूँ कविता के लिए क्या है अपरिहार्य
जूही के फूलों के बजाय कविता के विषय के रूप में,
इसलिए
सफ़ेद चावल ही है अधिक जीवन्त — और यह धूल मिट्टी का मनुष्य;

यह कविता इसलिए पैदल चलती है अन्धी गलियों की गन्दी बस्तियों में,
होटल के नाचघर के प्रति उसे नहीं है कोई आकर्षण,
उसे देखता हूँ — वह बैठी है एक भूमिहीन किसान की कुटिया में
एक नग्न शिशु के धूल भरे गाल को लगातार चूम रही है
मेरी कविता,

यह कविता कभी अकेली ही चलती चली जाती है अनाहारी
किसान के संग
ज़रूरी बातचीत करते हुए
उसके साथ उसकी ऐसी क्या बात होती है, नहीं जानता
अगले ही पल देखता हूँ वह भूखा किसान
शोषक के अनाज गोला को लूटने के लिए एकजुट खड़ा है;

इस कविता की अगर कोई सफलता है, तो यहीं है।

इसीलिए इस कविता के अक्षर लाल हैं, संगत के कारण ही लाल हैं
और कोई दूसरा रंग उसका हो ही नहीं सकता —
और दूसरा कोई विषय भी नहीं

इसीलिए
और कितनी बार कहूँ
जूही के फूलों के बजाय
सफ़ेद चावल ही है अधिक सुन्दर ।

मूल बांगला भाषा से अनुवाद : सुलोचना