"अन्धेरी निशा में नदी के किनारे / सरयू सिंह 'सुन्दर'" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरयू सिंह 'सुन्दर' |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} <p...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 14: | पंक्ति 14: | ||
कि उजड़ा किसी का चमन रो रहा है, | कि उजड़ा किसी का चमन रो रहा है, | ||
− | घनेरी | + | घनेरी निशा में न जलते सितारे, |
बिलखकर किसी की चिता जल रही है । | बिलखकर किसी की चिता जल रही है । | ||
20:15, 17 जुलाई 2024 का अवतरण
अन्धेरी निशा में नदी के किनारे
धधक कर किसी की चिता जल रही है ।
धरा रो रही है, बिलखती दिशाएँ,
असह वेदना ले गगन रो रहा है,
किसी की अधूरी कहानी सिसकती,
कि उजड़ा किसी का चमन रो रहा है,
घनेरी निशा में न जलते सितारे,
बिलखकर किसी की चिता जल रही है ।
चिता पर किसी की उजड़ती निशानी,
चिता पर किसी की धधकती जवानी,
किसी की सुलगती छटा जा रही है,
चिता पर किसी की सुलगती रवानी,
क्षणिक मोह-ममता जगत को बिसारे,
लहक कर किसी की चिता जल रही है ।
चिता पर किसी का मधुर प्यार जलता,
किसी का विकल प्राण, श्रृंगार जलता,
सुहागिन की सुषमा जली जा रही है,
अभागिन बनी जो कि संसार जलता,
नदी पार तृण पर अनल के सहारे
सिसक कर किसी की चिता जल रही है ।
अकेला चला था जगत के सफ़र में,
चला जा रहा है, जगत से अकेला,
क्षणिक दो घड़ी के लिए जग तमाशा,
क्षणिक मोह-ममता, जगत का झमेला,
लुटी जा रही हैं किसी की बहारें,
दहक कर किसी की चिता जल रही है ।