भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अब उसकी बज़्म में कौन आएगा खुदा जाने / कांतिमोहन 'सोज़'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कांतिमोहन 'सोज़' |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 13: पंक्ति 13:
 
वो आज मुझको लिए जा रहे हैं मयखाने I
 
वो आज मुझको लिए जा रहे हैं मयखाने I
  
नयी सदी में नए हादिसे तो होने हैं
+
नई सदी में नए हादिसे तो होने हैं
 
सुना है होश की पीने लगे हैं दीवाने I
 
सुना है होश की पीने लगे हैं दीवाने I
  
 
ग़ज़ल का फिर से सितारा बुलन्द होना है
 
ग़ज़ल का फिर से सितारा बुलन्द होना है
खुदा करे रहें सालिम ग़ज़ल के दीवाने I
+
ख़ुदा करे रहें सालिम ग़ज़ल के दीवाने I
  
चमन के अश्क न पोंछो वो दर्द से पुर है
+
ग़ज़ल ने मेरा मुक़द्दर बदल दिया यारो
चमन के हाल पे हंसते हैं आज वीराने I
+
उसी के फ़ैज़ से अपने हुए हैं बेगाने।
  
उसी के नाम पे सजती थी सोज़ की महफ़िल
+
चमन के अश्क न पोंछो वो चीख़ उट्ठेगा
उसी के नाम पे छलका करेंगे पैमाने II
+
अब उसके हाल पे हँसने लगे हैं वीराने I
 +
 
 +
ग़ज़ल के नाम पे सजती थी सोज़ की महफ़िल
 +
उसी के नाम पे छलका करेंगे पैमाने॥
 
</poem>
 
</poem>

03:05, 22 जुलाई 2024 के समय का अवतरण

अब उसकी बज़्म में कौन आएगा खुदा जाने I
सुना है शमा से बदज़न हुए हैं परवाने II

जो रोज़ बढ़के मेरा जाम छीन लेते थे
वो आज मुझको लिए जा रहे हैं मयखाने I

नई सदी में नए हादिसे तो होने हैं
सुना है होश की पीने लगे हैं दीवाने I

ग़ज़ल का फिर से सितारा बुलन्द होना है
ख़ुदा करे रहें सालिम ग़ज़ल के दीवाने I

ग़ज़ल ने मेरा मुक़द्दर बदल दिया यारो
उसी के फ़ैज़ से अपने हुए हैं बेगाने।

चमन के अश्क न पोंछो वो चीख़ उट्ठेगा
अब उसके हाल पे हँसने लगे हैं वीराने I

ग़ज़ल के नाम पे सजती थी सोज़ की महफ़िल
उसी के नाम पे छलका करेंगे पैमाने॥