भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आल्हा छन्द में कविता — बिना पात कौ तरुवर सूनो / ध्रुव शुक्ल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ध्रुव शुक्ल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
06:39, 31 जुलाई 2024 के समय का अवतरण
गाहक बिना बजरिया सूनी,
सूनी दौलत बिन व्यौपार ।
बिन आगी के चूलो सूनो,
सूनो बिन बिटिया घरबार ।
बिन पनहारी पनघट सूनो,
सूनी बिना चिरैया डार ।
चले बिना सब रस्ता सूनो,
सूनी रात बिना उजयार ।
बिना पात कौ तरुवर सूनो,
सूनो है पानी बिन ताल ।
बिना साँस सब दुनिया सूनी,
पञ्चों बिन सूनी चौपाल ।
बिन कान्धों की अरथी सूनी,
रूप बिना सूनो परकास ।
बिन हरयाए धरती सूनी,
सूनो बिन बातन आकास ।
बिन जोतें सब खेती सूनी,
सूनो खेती बिना समाज ।
बिना सुरों के साज हैं सूने,
सूनो है बिन बैद इलाज ।
बिन मूरत के मन्दिर सूनो,
करे बिना सब सूने काज ।
बिना राज के परजा सूनी,
सूनो बिन परजा के राज ।